चक्रवयुग
अनियंत्रित, अविवेकपूर्ण इच्छाओं का होना, इच्छाओं की कोख से साधन पैदा नहीं होते, वरन दरिद्रता पैदा होती है। जिसकी इच्छाएँ जितनी अधिक हैं, वह परिग्रह भी उतना ही करना चाहेगा और उसे याचना व दासता के चक्रवयुग में फँसना पड़ेगा। इसलिए जिसे दरिद्रता के निवारण के लिए कदम बढ़ाने हैं, उसे इच्छाओं की ओर से अपने पाँव पीछे हटाने पड़ेंगे; क्योंकि जो अपनी इच्छाओं को जितना छोड़ पाता है, वह उतना ही स्वतंत्र, सुखी, समृद्ध और अपरिग्रही बनता है। जिसकी चाहत कुछ नहीं है, उसकी निश्चिंतता अनंत हो जाती है।
The existence of uncontrollable, unreasonable desires, from the womb of desires does not create resources, but creates poverty. The greater the desires, the more he would like to do the same and he will have to be entangled in the cycle of begging and enslavement. Therefore one who has to take steps for the removal of poverty, he will have to withdraw his feet from the side of desires; Because the more one is able to give up his desires, the more free he becomes, happy, prosperous and unattainable. One who wants nothing, his peace becomes infinite.
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महर्षि दयानन्द की मानवीय संवेदना महर्षि स्वामी दयानन्द अपने करुणापूर्ण चित्त से प्रेरित होकर गुरुदेव की आज्ञा लेकर देश का भ्रमण करने निकल पड़े। तथाकथित ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व था। सती प्रथा के नाम पर महिलाओं को जिन्दा जलाया जा रहा था। स्त्रियों को पढने का अधिकार नहीं था। बालविवाह, नारी-शिक्षा,...