दिशाविहीन
कल्पना क्षेत्र में उठते रहने वाले विचार ही दिशाविशेष में भगदड़ करते हुए उस दिशा में रूचि लेने लगते हैं। बार-बार का प्रयास ही स्वभाव बन जाता है और उसे रुझान कहा जाने लगता है। ऐसे रुझान अनगढ़ होते हैं, जो कल्पनाओं की असंयत उड़ानों के कारण ढले हैं। इनमें अधिक मजबूती नहीं होती। दृढ़ता उनमें रहती है; जिनमें रूचि की महत्ता को समझते हुए प्रयत्नपूर्वक उसे उभारने के लिए प्रयत्न किय जाता है। जबकि प्रौढ़ता उन्ही विचारों में होती है; जिनके साथ रुझान का गहरा फुट होता हो; अन्यथा बेतुके विचार इस डाली से उस डाली पर फुदकने वाले पक्षी की तरह अकारण भगदड़ मचाए रहते हैं। उनसे मस्तिष्क घिरा रहता है और चिंतन का महत्वपूर्ण उपक्रम ऐसे ही दिशाविहीन भटकता और बर्बाद होता रहता है।
The thoughts which keep on rising in the field of imagination, stampede in a particular direction and start taking interest in that direction. Repeated effort becomes nature and it is called trend. Such tendencies are fuzzy, shaped by erratic flights of imagination. They do not have much strength. Perseverance resides in them; In which, understanding the importance of interest, efforts are made to develop it with effort. Whereas maturity is in those thoughts; With whom there is a deep foot of trend; Otherwise, absurd thoughts keep on creating panic unnecessarily from this branch like a bird hopping on that branch. The mind is surrounded by them and the important undertaking of contemplation keeps on wandering and wasted like this.
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महर्षि दयानन्द की मानवीय संवेदना महर्षि स्वामी दयानन्द अपने करुणापूर्ण चित्त से प्रेरित होकर गुरुदेव की आज्ञा लेकर देश का भ्रमण करने निकल पड़े। तथाकथित ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व था। सती प्रथा के नाम पर महिलाओं को जिन्दा जलाया जा रहा था। स्त्रियों को पढने का अधिकार नहीं था। बालविवाह, नारी-शिक्षा,...