चौदहवें समुल्लास भाग -1
अनुभूमिका (४)
जो यह १४ चौदहवां समुल्लास मुसलमानों के मतविषय में लिखा है सो केवल कुरान के अभिप्राय से। अन्य ग्रन्थ के मत से नहीं क्योंकि मुसलमान कुरान पर ही पूरा-पूरा विश्वास रखते हैं यद्यपि फिरके होने के कारण किसी शब्द अर्थ आदि विषय में विरुद्ध बात है तथापि कुरान पर सब ऐकमत्य हैं। जो कुरान अर्बी भाषा में है उस पर मौलवियों ने उर्दू में अर्थ लिखा है, उस अर्थ का देवनागरी अक्षर और आर्य्यभाषान्तर करा के पश्चात् अर्बी के बड़े-बड़े विद्वानों से शुद्ध करवा के लिखा गया है। यदि कोई कहे कि यह अर्थ ठीक नहीं है तो उस को उचित है कि मौलवी साहबों के तर्जुमों का पहले खण्डन करे पश्चात् इस विषय पर लिखे। क्योंकि यह लेख केवल मनुष्यों की उन्नति और सत्यासत्य के निर्णय के लिये है। सब मतों के विषयों का थोड़ा-थोड़ा ज्ञान होवे, इससे मनुष्यों को परस्पर विचार करने का समय मिले और एक दूसरे के दोषों का खण्डन कर गुणों का ग्रहण करें। न किसी अन्य मत पर न इस मत पर झूठ मूठ बुराई या भलाई लगाने का प्रयोजन है किन्तु जो-जो भलाई है वही भलाई और जो बुराई है वही बुराई सब को विदित होवे। न कोई किसी पर झूठ चला सके और न सत्य को रोक सके और सत्यासत्य विषय प्रकाशित किये पर भी जिस की इच्छा हो वह न माने वा माने।
किसी पर बलात्कार नहीं किया जाता। और यही सज्जनों की रीति है कि अपने वा पराये दोषों को दोष और गुणों को गुण जानकर गुणों का ग्रहण और दोषों का त्याग करें। और हठियों का हठ दुराग्रह न्यून करें करावें, क्योंकि पक्षपात से क्या-क्या अनर्थ जगत् में न हुए और न होते हैं। सच तो यह है कि इस अनिश्चित क्षणभंग जीवन में पराई हानि करके लाभ से स्वयं रिक्त रहना और अन्य को रखना मनुष्यपन से बहिः है। इसमें जो कुछ विरुद्ध लिखा गया हो उस को सज्जन लोग विदित कर देंगे तत्पश्चात् जो उचित होगा तो माना जायेगा क्योंकि यह लेख हठ, दुराग्रह, ईर्ष्या, द्वेष, वाद-विवाद और विरोध घटाने के लिये किया गया है न कि इन को बढ़ाने के अर्थ। क्योंकि एक दूसरे की हानि करने से पृथक् रह परस्पर को लाभ पहुँचाना हमारा मुख्य कर्म है। अब यह १४ चौदहवें समुल्लास में मुसलमानों का मतविषय सब सज्जनों के सामने निवेदन करता हूँ। विचार कर इष्ट का ग्रहण अनिष्ट का परित्याग कीजिये।
अलमतिविस्तरेण बुद्धिमद्वर्य्येषु।
इत्यनुभूमिका।।
अथ चतुर्दशसमुल्लासारम्भः
अथ यवनमतविषयं व्याख्यास्यामः
इसके आगे मुसलमानों के मतविषय में लिखेंगे-
१- आरम्भ साथ नाम अल्लाह के क्षमा करने वाला दयालु।। - मंजिल १। सिपारा १। सूरत १।।
(समीक्षक) मुसलमान लोग ऐसा कहते हैं कि यह कुरान खुदा का कहा है परन्तु इस वचन से विदित होता है कि इस को बनाने वाला कोई दूसरा है क्योंकि जो परमेश्वर का बनाया होता तो “आरम्भ साथ नाम अल्लाह के” ऐसा न कहता किन्तु ष्आरम्भ वास्ते उपदेश मनुष्यों केष् ऐसा कहता। यदि मनुष्यों को शिक्षा करता है कि तुम ऐसा कहो तो भी ठीक नहीं। क्योंकि इस से पाप का आरम्भ भी खुदा के नाम से होकर उसका नाम भी दूषित हो जाएगा। जो वह क्षमा और दया करनेहारा है तो उसने अपनी सृष्टि में मनुष्यों के सुखार्थ अन्य प्राणियों को मार, दारुण पीड़ा दिला कर, मरवा के मांस खाने की आज्ञा क्यों दी? क्या वे प्राणी अनपराधी और परमेश्वर के बनाये हुए नहीं हैं? और यह भी कहना था कि “परमेश्वर के नाम पर अच्छी बातों का आरम्भ” बुरी बातों का नहीं। इस कथन में गोलमाल है। क्या चोरी, जारी, मिथ्याभाषणादि अधर्म का भी आरम्भ परमेश्वर के नाम पर किया जाय? इसी से देख लो कसाई आदि मुसलमान, गाय आदि के गले काटने में भी ‘बिस्मिल्लाह’ इस वचन को पढ़ते हैं। जो यही इसका पूर्वोक्त अर्थ है तो बुराइयों का आरम्भ भी परमेश्वर के नाम पर मुसलमान करते हैं और मुसलमानों का ‘खुदा’ दयालु भी न रहेगा क्योंकि उस की दया उन पशुओं पर न रही। और जो मुसलमान लोग इस का अर्थ नहीं जानते तो इस वचन का प्रकट होना व्यर्थ है। यदि मुसलमान लोग इस का अर्थ और करते हैं तो सूधा अर्थ क्या है ? इत्यादि।।१।।
२- सब स्तुति परमेश्वर के वास्ते हैं जो परवरदिगार अर्थात् पालन करनेहारा है सब संसार का।। क्षमा करने वाला दयालु है ।। - मं० १। सि० १। सूरतुल्फातिहा आयत १। २।।
(समीक्षक) जो कुरान का खुदा संसार का पालन करने हारा होता और सब पर क्षमा और दया करता होता तो अन्य मत वाले और पशु आदि को भी मुसलमानों के हाथ से मरवाने का हुक्म न देता । जो क्षमा करनेहारा है तो क्या पापियों पर भी क्षमा करेगा ? और जो वैसा है तो आगे लिखेंगे कि ष्काफिरों को कतल करोष् अर्थात् जो कुरान और पैगम्बर को न मानें वे काफिर हैं ऐसा क्यों कहता ? इसलिये कुरान ईश्वरकृत नहीं दीखता।।२।।
३- मालिक दिन न्याय का।। तुझ ही को हम भक्ति करते हैं और तुझ ही से सहाय चाहते हैं।। दिखा हम को सीधा रास्ता।। - मं० १। सि० १। सू० १। आ० ३। ४। ५।।
(समीक्षक) क्या खुदा नित्य न्याय नहीं करता ? किसी एक दिन न्याय करता है ? इस से तो अन्धेर विदित होता है! उसी की भक्ति करना और उसी से सहाय चाहना तो ठीक परन्तु क्या बुरी बात का भी सहाय चाहना ? और सूधा मार्ग एक मुसलमानों ही का है वा दूसरे का भी ? सूधे मार्ग को मुसलमान क्यों नहीं ग्रहण करते ? क्या सूधा रास्ता बुराई की ओर का तो नहीं चाहते? यदि भलाई सब की एक है तो फिर मुसलमानों ही में विशेष कुछ न रहा और जो दूसरों की भलाई नहीं मानते तो पक्षपाती हैं।।३।।
४- दिखा उन लोगों का रास्ता कि जिन पर तूने निआमत की।। और उनका मार्ग मत दिखा कि जिन के ऊपर तू ने गजब अर्थात् अत्यन्त क्रोध की दृष्टि की और न गुमराहों का मार्ग हमको दिखा।। - मं० १। सि० १। सू० १। आ० ६। ७।।
(समीक्षक) जब मुसलमान लोग पूर्वजन्म और पूर्वकृत पाप पुण्य नहीं मानते तो किन्हीं पर निआमत अर्थात् फजल वा दया करने और किन्हीं पर न करने से खुदा पक्षपाती हो जायगा। क्योंकि विना पाप-पुण्य सुख-दुःख देना केवल अन्याय की बात है। और विना कारण किसी पर दया और किसी पर क्रोधदृष्टि करना भी स्वभाव से बहिः है क्योंकि विना भलाई बुराई के वह दया अथवा क्रोध नहीं कर सकता और जब उनके पूर्व संचित पुण्य पाप ही नहीं तो किसी पर दया और किसी पर क्रोध करना नहीं हो सकता। और इस सूरत की टिप्पन पर यह “सूर अल्लाह साहेब ने मनुष्यों के मुख से कहलाई कि सदा इस प्रकार से कहा करें।” जो यह बात है तो ‘अलिफ बे’ आदि अक्षर भी खुदा ही ने पढ़ाये होंगे, जो कहो कि नहीं तो विना अक्षर ज्ञान के इस सूरः को कैसे पढ़ सके ? क्या कण्ठ ही से बुलाये और बोलते गये ? जो ऐसा है तो सब कुरान ही कण्ठ से पढ़ाया होगा। इस से ऐसा समझना चाहिये कि जिस पुस्तक में पक्षपात की बातें पाई जायें वह पुस्तक ईश्वरकृत नहीं हो सकता। जैसा कि अरबी भाषा में उतारने से अरब वालों को इस का पढ़ना सुगम, अन्य भाषा बोलने वालों को कठिन होता है। इसी से खुदा में पक्षपात आता है। और जैसे परमेश्वर ने सृष्टिस्थ सब देशस्थ मनुष्यों पर न्यायदृष्टि से सब देशभाषाओं से विलक्षण संस्कृत भाषा कि जो सब देशवालों के लिये एक से परिश्रम से विदित होती है उसी में वेदों का प्रकाश किया है, यह करता तो कुछ भी दोष नहीं होता।।४।।
५- यह पुस्तक कि जिस में सन्देह नहीं; परहेजगारों को मार्ग दिखलाती है।। जो कि ईमान लाते हैं साथ गैब (परोक्ष) के, नमाज पढ़ते, और उस वस्तु से जो हम ने दी खर्च करते हैं।। और वे लोग जो उस किताब पर ईमान लाते हैं जो रखते हैं तेरी ओर वा तुझ से पहिले उतारी गई, और विश्वास कयामत पर रखते हैं।। ये लोग अपने मालिक की शिक्षा पर हैं और ये ही छुटकारा पाने वाले हैं।। निश्चय जो काफिर हुए उन पर तेरा डराना न डराना समान है। वे ईमान न लावेंगे।। अल्लाह ने उन के दिलों, कानों पर मोहर कर दी और उन की आंखों पर पर्दा है और उन के वास्ते बड़ा अ-जाब है।। - मं० १। सि०१। सूरत २। आ० १। २। ३। ४। ५। ६। ७।।
(समीक्षक) क्या अपने ही मुख से अपनी किताब की प्रशंसा करना खुदा की दम्भ की बात नहीं? जब ‘परहे-जगार’ अर्थात् धार्मिक लोग हैं वे तो स्वतः सच्चे मार्ग पर हैं और जो झूठे मार्ग पर हैं उन को यह कुरान मार्ग ही नहीं दिखला सकता, फिर किस काम का रहा? ।।१।। क्या पाप पुण्य और पुरुषार्थ के विना खुदा अपने ही खजाने से खर्च करने को देता है ? जो देता है तो सब को क्यों नहीं देता? और मुसलमान लोग परिश्रम क्यों करते हैं? ।।२।। और जो बाइबल इञ्जील आदि पर विश्वास करना योग्य है तो मुसलमान इञ्जील आदि पर ईमान जैसा कुरान पर है वैसा क्यों नहीं लाते? और जो लाते हैं तो कुरान१ का होना किसलिये? जो कहें कि कुरान में अधिक बातें हैं तो पहली किताब में लिखना खुदा भूल गया होगा! और जो नहीं भूला तो कुरान का बनाना निष्प्रयोजन है। और हम देखते हैं तो बाइबल और कुरान की बातें कोई-कोई न मिलती होंगी नहीं तो सब मिलती हैं। एक ही पुस्तक जैसा कि वेद है क्यों न बनाया? कयामत पर ही विश्वास रखना चाहिये; अन्य पर नहीं? ।।३।। क्या जो ईसाई और मुसलमान ही खुदा की शिक्षा पर हैं उन में कोई भी पापी नहीं है? क्या ईसाई और मुसलमान अधर्मी हैं वे भी छुटकारा पावें और दूसरे धर्मात्मा भी न पावें तो बड़े अन्याय और अन्धेर की बात नहीं है? ।।४।। और क्या जो लोग मुसलमानी मत को न मानें उन्हीं को काफिर कहना वह एकतर्फी डिगरी नहीं है? ।।५।। जो परमेश्वर ही ने उनके अन्तःकरण और कानों पर मोहर लगाई और उसी से वे पाप करते हैं तो उन का कुछ भी दोष नहीं। यह दोष खुदा ही का है फिर उन पर सुख-दुःख वा पाप-पुण्य नहीं हो सकता पुनः उन को सजा जजा क्यों करता है? क्योंकि उन्होंने पाप वा पुण्य स्वतन्त्रता से नहीं किया।।५।।
६-उनके दिलों में रोग है, अल्लाह ने उन का रोग बढ़ा दिया।। - मं० १। सि० १। सू० २। आ० १०।।
(समीक्षक) भला विना अपराध खुदा ने उन का रोग बढ़ाया, दया न आई, उन बिचारों को बड़ा दुःख हुआ होगा! क्या यह शैतान से बढ़कर शैतानपन का काम नहीं है? किसी के मन पर मोहर लगाना, किसी का रोग बढ़ाना, यह खुदा का काम नहीं हो सकता क्योंकि रोग का बढ़ना अपने पापों से है।।६।।
७- जिस ने तुम्हारे वास्ते पृथिवी बिछौना और आसमान की छत को बनाया।। - मं० १। सि०१। सू०२। आ० २२।।
(समीक्षक) भला आसमान छत किसी की हो सकती है? यह अविद्या की बात है। आकाश को छत के समान मानना हंसी की बात है। यदि किसी प्रकार की पृथिवी को आसमान मानते हों तो उनकी घर की बात है।।७ ।।
८- जो तुम उस वस्तु से सन्देह में हो जो हम ने अपने पैगम्बर के ऊपर उतारी तो उस कैसी एक सूरत ले आओ और अपने साक्षी अपने लोगों को पुकारो अल्लाह के विना जो तुम सच्चे हो।। जो तुम और कभी न करोगे तो उस आग से डरो कि जिस का इन्धन मनुष्य है, और काफिरों के वास्ते पत्थर तैयार किये गये हैं।। - मं० १। सि०१। सू०२। आ०२३। २४।।
(समीक्षक) भला यह कोई बात है कि उस के सदृश कोई सूरत न बने? क्या अकबर बादशाह के समय में मौलवी फैजी ने विना नुकते का कुरान नहीं बना लिया था? वह कौन सी दो-जख की आग है? क्या इस आग से न डरना चाहिये ? इस का भी इन्धन जो कुछ पड़े सब है। जैसे कुरान में लिखा है कि काफिरों के वास्ते दोजख की आग तैयार की गई है तो वैसे पुराणों में लिखा है।
१- वास्तव में यह शब्द ‘‘क़ुरआन’’ है परन्तु भाषा में लोगों के बोलने में क़ुरान आता है इसलिये ऐसा ही लिखा है ।
कि म्लेच्छों के लिये घोर नरक बना है! अब कहिये किस की बात सच्ची मानी जाय? अपने-अपने वचन से दोनों स्वर्गगामी और दूसरे के मत से दोनों नरकगामी होते हैं। इसलिए इन सब का झगड़ा झूठा है किन्तु जो धार्मिक हैं वे सुख और जो पापी हैं वे सब मतों में दुःख पावेंगे।।८।।
९- और आनन्द का सन्देशा दे उन लोगों को कि ईमान लाए और काम किए अच्छे। यह कि उन के वास्ते बहिश्तें हैं जिन के नीचे से चलती हैं नहरें। जब उन में से मेवों के भोजन दिये जावेंगे तब कहेंगे कि यह वो वस्तु हैं जो हम पहिले इस से दिये गये थे— और उन के लिये पवित्र बीवियाँ सदैव वहाँ रहने वाली हैं।। - मं० १। सि० १। सू० २। आ० २५।।
(समीक्षक) भला! यह कुरान का बहिश्त संसार से कौन सी उत्तम बात वाला है ? क्योंकि जो पदार्थ संसार में हैं वे ही मुसलमानों के स्वर्ग में हैं और इतना विशेष है कि यहाँ जैसे पुरुष जन्मते मरते और आते जाते हैं उसी प्रकार स्वर्ग में नहीं। किन्तु यहाँ की स्त्रियाँ सदा नहीं रहतीं और वहाँ बीवियाँ अर्थात् उत्तम स्त्रियाँ सदा काल रहती हैं तो जब तक कयामत की रात न आवेगी तब तक उन बिचारियों के दिन कैसे कटते होंगे ? हां जो खुदा की उन पर कृपा होती होगी! और खुदा ही के आश्रय समय काटती होंगी तो ठीक है। क्योंकि यह मुसलमानों का स्वर्ग गोकुलिये गुसाँइयों के गोलोक और मन्दिर के सदृश दीखता है क्योंकि वहाँ स्त्रियों का मान्य बहुत, पुरुषों का नहीं। वैसे ही खुदा के घर में स्त्रियों का मान्य अधिक और उन पर खुदा का प्रेम भी बहुत है उन पुरुषों पर नहीं। क्योंकि बीवियों को खुदा ने बहिश्त में सदा रक्खा और पुरुषों को नहीं। वे बीवियां विना खुदा की मर्जी स्वर्ग में कैसे ठहर सकतीं ? जो यह बात ऐसी ही हो तो खुदा स्त्रियों में फंस जाय!।।९।।
१०- आदम को सारे नाम सिखाये। फिर फरिश्तों के सामने करके कहा जो तुम सच्चे हो मुझे उन के नाम बताओ।। कहा हे आदम! उन को उन के नाम बता दे। तब उस ने बता दिये तो खुदा ने फरिश्तों से कहा कि क्या मैंने तुम से नहीं कहा था कि निश्चय मैं पृथिवी और आसमान की छिपी वस्तुओं को और प्रकट छिपे कर्मों को जानता हूँ ।। - मं० १। सि० १। सू० २। आ० ३०। ३१।।
(समीक्षक) भला ऐसे फरिश्तों को धोखा देकर अपनी बड़ाई करना खुदा का काम हो सकता है ? यह तो एक दम्भ की बात है। इस को कोई विद्वान् नहीं मान सकता और न ऐसा अभिमान करता। क्या ऐसी बातों से ही खुदा अपनी सिद्धाई जमाना चाहता है? हाँ! जंगली लोगों में कोई कैसा ही पाखण्ड चला लेवे चल सकता है; सभ्यजनों में नहीं ।।१०।।
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Is it good that there should not be any resemblance to it? Did not Maulvi Faizi make the Quran of Vina Nukte during the time of Akbar Emperor? What double wounds is that? Should not be afraid of this fire? Whatever is left of this, it is all. Just as it is written in the Quran that the fire of dozakh has been prepared for the infidels, so it is written in the Puranas.
Fourteen Chapter Part - 1 of Satyarth Prakash (the Light of Truth) | Arya Samaj Raipur | Arya Samaj Mandir Raipur | Arya Samaj Mandir Marriage Helpline Raipur | Aryasamaj Mandir Helpline Raipur | inter caste marriage Helpline Raipur | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Raipur | Arya Samaj Raipur | Arya Samaj Mandir Raipur | arya samaj marriage Raipur | arya samaj marriage rules Raipur | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj Raipur | human rights in Raipur | human rights to marriage in Raipur | Arya Samaj Marriage Guidelines Raipur | inter caste marriage consultants in Raipur | court marriage consultants in Raipur | Arya Samaj Mandir marriage consultants in Raipur | arya samaj marriage certificate Raipur | Procedure of Arya Samaj Marriage Raipur | arya samaj marriage registration Raipur | arya samaj marriage documents Raipur | Procedure of Arya Samaj Wedding Raipur | arya samaj intercaste marriage Raipur | arya samaj wedding Raipur | arya samaj wedding rituals Raipur | arya samaj wedding legal Raipur | arya samaj shaadi Raipur | arya samaj mandir shaadi Raipur | arya samaj shadi procedure Raipur | arya samaj mandir shadi valid Raipur | arya samaj mandir shadi Raipur | inter caste marriage Raipur | validity of arya samaj marriage certificate Raipur | validity of arya samaj marriage Raipur | Arya Samaj Marriage Ceremony Raipur | Arya Samaj Wedding Ceremony Raipur | Documents required for Arya Samaj marriage Raipur | Arya Samaj Legal marriage service Raipur | Arya Samaj Pandits Helpline Raipur | Arya Samaj Pandits Raipur | Arya Samaj Pandits for marriage Raipur | Arya Samaj Temple Raipur | Arya Samaj Pandits for Havan Raipur | Arya Samaj Pandits for Pooja Raipur | Pandits for marriage Raipur | Pandits for Pooja Raipur | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction without Demolition Raipur | Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Raipur | Vedic Pandits Helpline Raipur | Hindu Pandits Helpline Raipur | Pandit Ji Raipur, Arya Samaj Intercast Matrimony Raipur | Arya Samaj Hindu Temple Raipur | Hindu Matrimony Raipur | सत्यार्थप्रकाश | वेद | महर्षि दयानन्द सरस्वती | विवाह समारोह, हवन | आर्य समाज पंडित | आर्य समाजी पंडित | अस्पृश्यता निवारणार्थ अन्तरजातीय विवाह | आर्य समाज मन्दिर | आर्य समाज मन्दिर विवाह | वास्तु शान्ति हवन | आर्य समाज मन्दिर आर्य समाज विवाह भारत | Arya Samaj Mandir Marriage Raipur Chhattisgarh India
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