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चौदहवें समुल्लास भाग -5

७१- अवश्य हम ने तुम को उत्पन्न किया, फिर तुम्हारी सूरतें बनाईं। फिर हम ने फरिश्तों से कहा कि आदम को सिजदा करो, बस उन्होंने सिजदा किया परन्तु शैतान सिजदा करने वालों में से न हुआ।। कहा जब मैंने तुझे आज्ञा दी फिर किस ने रोका कि तूने सिजदा न किया, कहा मैं उस से अच्छा हूँ, तूने मुझ को आग से और उस को मिट्टी से उत्पन्न किया।। कहा बस उस में से उतर, यह तेरे योग्य नहीं है कि तू उस में अभिमान करे।। कहा उस दिन तक ढील दे कि कबरों में से उठाये जावें।। कहा निश्चय तू ढील दिये गयों से है।। कहा बस इस की कसम है कि तूने मुझ को गुमराह किया, अवश्य मैं उन के लिये तेरे सीधे मार्ग पर बैठूंगा।। और प्रायः तू उन को धन्यवाद करने वाला न पावेगा।। कहा उस से दुर्दशा के साथ निकल, अवश्य जो कोई उन में से तेरा पक्ष करेगा तुम सब से दोजख को भरूंगा।। - मं० २। सि० ८। सू० ७। आ० ११। १२। १३। १४। १५। १६। १७।।

(समीक्षक) अब ध्यान देकर सुनो खुदा और शैतान के झगड़े को। एक फरिश्ता, जैसा कि चपरासी हो, था। वह भी खुदा से न दबा और खुदा उस के आत्मा को पवित्र भी न कर सका। फिर ऐसे बागी को जो पापी बना कर गदर करने वाला था उस को खुदा ने छोड़ दिया। खुदा की यह बड़ी भूल है। शैतान तो सब को बहकाने वाला और खुदा शैतान को बहकाने वाला होने से यह सिद्ध होता है कि शैतान का भी शैतान खुदा है। क्योंकि शैतान प्रत्यक्ष कहता है कि तूने मुझे गुमराह किया। इस से खुदा में पवित्रता भी नहीं पाई जाती और सब बुराइयों का चलाने वाला मूल कारण खुदा हुआ। ऐसा खुदा मुसलमानों ही का हो सकता है, अन्य श्रेष्ठ विद्वानों का नहीं। और फरिश्तों से मनुष्यवत् वार्तालाप करने से देहधारी, अल्पज्ञ, न्यायरहित मुसलमानों का खुदा है। इसी से विद्वान् लोग इसलाम के मज़हब को पसन्द नहीं करते।।७१।।

७२- निश्चय तुम्हारा मालिक अल्लाह है जिस ने आसमानों और पृथिवी को छः दिन में उत्पन्न किया। फिर करार पकड़ा अर्श पर।। दीनता से अपने मालिक को पुकारो।। - मं० २। सि० ८। सू० ७। आ० ५४। ५६।।

(समीक्षक) भला! जो छः दिन में जगत् को बनावे, (अर्श) अर्थात् ऊपर के आकाश में सिहासन पर आराम करे वह ईश्वर सर्वशक्तिमान् और व्यापक कभी हो सकता है? इस के न होने से वह खुदा भी नहीं कहा सकता। क्या तुम्हारा खुदा बधिर है जो पुकारने से सुनता है? ये सब बातें अनीश्वरकृत हैं। इस से कुरान ईश्वरकृत नहीं हो सकता। यदि छः दिनों में जगत् बनाया, सातवें दिन अर्श पर आराम किया तो थक भी गया होगा और अब तक सोता है वा जागा है? यदि जागता है तो अब कुछ काम करता है वा निकम्मा सैल सपट्टा और ऐश करता फिरता है।।७२।।

७३- मत फिरो पृथिवी पर झगड़ा करते।। - मं० २। सि० ८। सू० ७। आ० ७४।।

(समीक्षक) यह बात तो अच्छी है परन्तु इस से विपरीत दूसरे स्थानों में जिहाद करना काफिरों को मारना भी लिखा है। अब कहो यह पूर्वापर विरुद्ध नहीं है? इस से यह विदित होता है कि जब मुहम्मद साहेब निर्बल हुए होंगे तब उन्होंने यह उपाय रचा होगा और जब सबल हुए होंगे तब झगड़ा मचाया होगा। इसी से ये बातें परस्पर विरुद्ध होने से दोनों सत्य नहीं हैं।।७३।।

७४- बस एक ही बार अपना असा डाल दिया और वह अजगर था प्रत्यक्ष।। - मं० २। सि० ९। सू० ७। आ० १०७।।

(समीक्षक) अब इस के लिखने से विदित होता है कि ऐसी झूठी बातों को खुदा और मुहम्मद साहेब भी मानते थे। जो ऐसा है तो ये दोनों विद्वान् नहीं थे क्योंकि जैसे आंख से देखने को और कान से सुनने को अन्यथा कोई नहीं कर सकता। इसी से ये इन्द्रजाल की बातें हैं।।७४।।

७५- बस हम ने उन पर मेह का तूफान भेजा! टीढ़ी, चिचड़ी और मैंढक और लोहू।। बस उन से हम ने बदला लिया और उन को डुबो दिया दरियाव में।। और हम ने बनी इसराईल को दरियाव से पार उतार दिया।। निश्चय वह दीन झूठा है कि जिस में वे हैं और उन का कार्य्य भी झूठा है।। - मं० २। सि० ९। सू० ७। आ० १३३। १३६। १३७। १३९।।

(समीक्षक) अब देखिये! जैसा कोई पाखण्डी किसी को डरावे कि हम तुझ पर सर्पों को काटने के लिये भेजेंगे। ऐसी ही यह भी बात है। भला! जो ऐसा पक्षपाती कि एक जाति को डुबा दे और दूसरी को पार उतारे वह अधर्मी खुदा क्यों नहीं। जो दूसरे मतों को कि जिन में हजारों क्रोड़ों मनुष्य हों झूठा बतलावे और अपने को सच्चा, उस से परे झूठा दूसरा मत कौन हो सकता है? क्योंकि किसी मत में सब मनुष्य बुरे और भले नहीं हो सकते। यह इकतर्फी डिगरी करना महामूर्खों का मत है। क्या तौरेत जबूर का दीन, जो कि उन का था; झूठा हो गया? वा उन का कोई अन्य मजहब था कि जिस को झूठा कहा और जो वह अन्य मजहब था तो कौन सा था कहो कि जिस का नाम कुरान में हो।।७५।।

७६- बस तू मुझ को अलबत्ता देख सकेगा, जब प्रकाश किया उस के मालिक ने पहाड़ की ओर उस को परमाणु-परमाणु किया। गिर पड़ा मूसा बेहोश।। - मं० २। सि० ९। सू० ७। आ० १४३।।

(समीक्षक) जो देखने में आता है वह व्यापक नहीं हो सकता। और ऐसे चमत्कार करता फिरता था तो खुदा इस समय ऐसा चमत्कार किसी को क्यों नहीं दिखलाता? सर्वथा विद्या विरुद्ध होने से यह बात मानने योग्य नहीं।।७६।।

७७- और अपने मालिक को दीनता डर से मन में याद कर, धीमी आवाज से सुबह को और शाम को।। - मं० २। सि० ९। सू० ७। आ० २०५।।

(समीक्षक) कहीं-कहीं कुरान में लिखा है कि बड़ी आवाज से अपने मालिक को पुकार और कहीं-कहीं धीरे-धीरे मन में ईश्वर का स्मरण कर। अब कहिये! कौन सी बात सच्ची? और कौन सी झूठी? जो एक दूसरी बात से विरोध करती है वह बात प्रमत्त गीत के समान होती है। यदि कोई बात भ्रम से विरुद्ध निकल जाय उस को मान ले तो कुछ चिन्ता नहीं।।७७।।

७८- प्रश्न करते हैं तुझ को लूटों से कह लूटें वास्ते अल्लाह के और रसूल के और डरो अल्लाह से।। - मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० १।।

(समीक्षक) जो लूट मचावें, डाकू के कर्म करें करावें और खुदा तथा पैगम्बर और ईमानदार भी बनें, यह बड़े आश्चर्य की बात है और अल्लाह का डर बतलाते और डाकादि बुरे काम भी करते जायें और ‘उत्तम मत हमारा है’ कहते लज्जा भी नहीं। हठ छोड़ के सत्य वेदमत का ग्रहण न करें इस से अधिक कोई बुराई दूसरी होगी? ।।७८।।

७९- और काटे जड़ काफिरों की।। मैं तुम को सहाय दूंगा। साथ सहस्र फरिश्तों के पीछे पीछे आने वाले।। अवश्य मैं काफिरों के दिलों में भय डालूंगा। बस मारो ऊपर गर्दनों के मारो उन में से प्रत्येक पोरी (सन्धि) पर।। - मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० ७। ९। १२।।

(समीक्षक) वाह जी वाह! कैसा खुदा और कैसे पैगम्बर दयाहीन। जो मुसलमानी मत से भिन्न काफिरों की जड़ कटवावे। और खुदा आज्ञा देवे उन की गर्दन पर मारो और हाथ पग के जोड़ों को काटने का सहाय और सम्मति देवे ऐसा खुदा लंकेश से क्या कुछ कम है? यह सब प्रपञ्च कुरान के कर्त्ता का है, खुदा का नहीं। यदि खुदा का हो तो ऐसा खुदा हम से दूर और हम उस से दूर रहें।।७९।।

८०- अल्लाह मुसलमानों के साथ है।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो पुकारना स्वीकार करो वास्ते अल्लाह के और वास्ते रसूल के ।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो मत चोरी करो अल्लाह की रसूल की और मत चोरी करो अमानत अपनी की।। और मकर करता था अल्लाह और अल्लाह भला मकर करने वालों का है।। - मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० १९। २०। २९। ३०।।

(समीक्षक) क्या अल्लाह मुसलमानों का पक्षपाती है, जो ऐसा है तो अधर्म करता है। नहीं तो ईश्वर सब सृष्टि भर का है। क्या खुदा बिना पुकारे नहीं सुन सकता। बधिर है? और उस के साथ रसूल को शरीक करना बहुत बुरी बात नहीं है? अल्लाह का कौन सा ख़जाना भरा है जो चोरी करेगा? क्या रसूल और अपने अमानत की चोरी छोड़कर अन्य सब की चोरी किया करे? ऐसा उपदेश अविद्वान् और अधर्मियों का हो सकता है? भला! जो मकर करता और जो मकर करने वालों का संगी है वह खुदा कपटी, छली और अधर्मी क्यों नहीं ? इसलिये यह कुरान खुदा का बनाया हुआ नहीं है। किसी कपटी छली का बनाया होगा। नहीं तो ऐसी अन्यथा बातें लिखित क्यों होतीं? ।।८०।।

८१- और लड़ो उन से यहां तक कि न रहे फितना अर्थात् बल काफिरों का और होवे दीन तमाम वास्ते अल्लाह के।। और जानो तुम यह कि जो कुछ तुम लूटो किसी वस्तु से निश्चय वास्ते अल्लाह के है पाँचवाँ हिस्सा उस का और वास्ते रसूल के।। - मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० ३९। ४१।।

(समीक्षक) ऐसे अन्याय से लड़ने लड़ाने वाला मुसलमानों के खुदा से भिन्न शान्तिभंगकर्ता दूसरा कौन होगा? अब देखिये यह मजहब कि अल्लाह और रसूल के वास्ते सब जगत् को लूटना लुटवाना लुटेरों का काम नहीं है? और लूट के माल में खुदा का हिस्सेदार बनना जानो डाकू बनना है और ऐसे लुटेरों का पक्षपाती बनना खुदा अपनी खुदाई में बट्टा लगाता है। बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसा पुस्तक, ऐसा खुदा और ऐसा पैगम्बर संसार में ऐसी उपाधि और शान्तिभंग करके मनुष्यों को दुःख देने के लिये कहां से आया? जो ऐसे-ऐसे मत जगत् में प्रचलित न होते तो सब जगत् आनन्द में बना रहता।।८१।।

८२- और कभी देखे तू जब काफिरों को फरिश्ते कब्ज करते हैं, मारते हैं, मुख उन के और पीठें उन की और कहते चखो अजाब जलने का।। हम ने उन के पाप से उन को मारा और हम ने फिराओन की कौम को डुबा दिया ।। और तैयारी करो वास्ते उन के जो कुछ तुम कर सको।। - मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० ५०। ५४। ६०।।

(समीक्षक) क्यों जी! आजकल रूस ने रूम आदि और इंग्लैण्ड ने मिश्र की दुर्दशा कर डाली; फरिश्ते कहां सो गये? और अपने सेवकों के शत्रुओं को खुदा पूर्व मारता डुबाता था यह बात सच्ची हो तो आजकल भी ऐसा करे जिस से ऐसा नहीं होता इसलिये यह बात मानने योग्य नहीं? अब देखिये ! यह कैसी बुरी आज्ञा है कि जो कुछ तुम कर सको वह भिन्न मत वालों के लिये दुःखदायक कर्म करो। ऐसी आज्ञा विद्वान् और धार्मिक दयालु की नहीं हो सकती। फिर लिखते हैं कि खुदा दयालु और न्यायकारी है। ऐसी बातों से मुसलमानों के खुदा से न्याय और दयादि सद्गुण दूर बसते हैं।।८२।।

८३- ऐ नबी किफायत है तुझ को अल्लाह और उन को जिन्होंने मुसलमानों से तेरा पक्ष किया।। ऐ नबी रगबत अर्थात् चाह चस्का दे मुसलमानों को ऊपर लड़ाई के, जो हों तुम में से २० आदमी सन्तोष करने वाले तो पराजय करें दो सौ का।। बस खाओ उस वस्तु से कि लूटा है तुमने हलाल पवित्र और डरो अल्लाह से वह क्षमा करने वाला दयालु है।। - मं० २। सि० १०। सू० ८। आ० ६४। ६५। ६९।।

(समीक्षक) भला यह कौन सी न्याय, विद्वत्ता और धर्म की बात है कि जो अपना पक्ष करे और चाहें अन्याय भी करे उसी का पक्ष और लाभ पहुँचावे? और जो प्रजा में शान्तिभंग करके लड़ाई करे करावे और लूट मार के पदार्थों को हलाल बतलावे और फिर उसी का नाम क्षमावान् दयालु लिखे यह बात खुदा की तो क्या किन्तु किसी भले आदमी की भी नहीं हो सकती। ऐसी-ऐसी बातों से कुरान ईश्वरवाक्य कभी नहीं हो सकता।।८३।।

८४- सदा रहेंगे बीच उस के, अल्लाह समीप है उस के पुण्य बड़ा।। ऐ लोगो! जो ईमान लाये हो मत पकड़ो बापों अपने को और भाइयों अपने को मित्र जो दोस्त रखें कुफ्र को ऊपर ईमान के।। फिर उतारी अल्लाह ने तसल्ली अपनी ऊपर रसूल अपने के और ऊपर मुसलमानों के और उतारे लश्कर नहीं देखा तुम ने उन को और अजाब किया उन लोगों को और यही सजा है काफिरों को।। फिर-फिर आवेगा अल्लाह पीछे उस के ऊपर।। और लड़ाई करो उन लोगों से जो ईमान नहीं लाते।। - मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० २२। २३। २६। २७।।

(समीक्षक) भला जो बहिश्तवालों के समीप अल्लाह रहता है तो सर्वव्यापक क्योंकर हो सकता है? जो सर्वव्यापक नहीं तो सृष्टिकर्त्ता और न्यायाधीश नहीं हो सकता। और अपने माँ, बाप, भाई और मित्र को छुड़वाना केवल अन्याय की बात है। हां! जो वे बुरा उपदेश करें; न मानना परन्तु उन की सेवा सदा करनी चाहिये। जो पहले खुदा मुसलमानों पर बड़ा सन्तोषी था; और उनके सहाय के लिए लश्कर उतारता था सच हो तो अब ऐसा क्यों नहीं करता? और जो प्रथम काफिरों को दण्ड देता और पुनः उसके ऊपर आता था तो अब कहाँ गया? क्या विना लड़ाई के ईमान खुदा नहीं बना सकता? ऐसे खुदा को हमारी ओर से सदा तिलाञ्जलि है, खुदा क्या है एक खिलाड़ी है? ।।८४।।

८५- और हम बाट देखने वाले हैं वास्ते तुम्हारे यह कि पहुँचावें तुम को अल्लाह अजाब अपने पास से वा हमारे हाथों से।। - मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० ५२।।

(समीक्षक) क्या मुसलमान ही ईश्वर की पुलिस बन गये हैं कि अपने हाथ वा मुसलमानों के हाथ से अन्य किसी मत वालों को पकड़ा देता है? क्या दूसरे क्रोड़ों मनुष्य ईश्वर को अप्रिय हैं? मुसलमानों में पापी भी प्रिय हैं? यदि ऐसा है तो अन्धेर नगरी गवरगण्ड राजा की सी व्यवस्था दीखती है। आश्चर्य है कि जो बुद्धिमान् मुसलमान हैं वे भी इस निर्मूल अयुक्त मत को मानते हैं।।८५।।

८६- प्रतिज्ञा की है अल्लाह ने ईमान वालों से और ईमानवालियों से बहिश्तें चलती हैं नीचे उन के से नहरें सदैव रहने वाली बीच उस के और घर पवित्र बीच बहिश्तों अदन के और प्रसन्नता अल्लाह की ओर बड़ी है और यह कि वह है मुराद पाना बड़ा।। बस ठट्ठा करते हैं उन से, ठट्ठा किया अल्लाह ने उन से।। - मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० ७३। ८०।।

(समीक्षक) यह खुदा के नाम से स्त्री पुरुषों को अपने मतलब के लिये लोभ देना है। क्योंकि जो ऐसा प्रलोभन न देते तो कोई मुहम्मद साहेब के जाल में न फंसता। ऐसे ही अन्य मत वाले भी किया करते हैं। मनुष्य लोग तो आपस में ठट्ठा किया ही करते हैं परन्तु खुदा को किसी से ठट्ठा करना उचित नहीं है। यह कुरान क्या है बड़ा खेल है।।८६।।

८७- परन्तु रसूल और जो लोग कि साथ उसके ईमान लाये जिहाद किया उन्होंने साथ धन अपने के तथा जानों अपनी के और इन्हीं लोगों के लिये भलाई है ।। और मोहर रक्खी अल्लाह ने ऊपर दिलों उन के, बस वे नहीं जानते।। - मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० ८८। ९३।।

(समीक्षक) अब देखिये मतलबसिन्धु की बात! कि वे ही भले हैं जो मुहम्मद साहेब के साथ ईमान लाये और जो नहीं लाये वे बुरे हैं! क्या यह बात पक्षपात और अविद्या से भरी हुई नहीं है? जब खुदा ने मोहर ही लगा दी तो उन का अपराध पाप करने में कोई भी नहीं किन्तु खुदा ही का अपराध है क्योंकि उन बिचारों को भलाई से दिलों पर मोहर लगा के रोक दिये; यह कितना बड़ा अन्याय है!!! ।।८७।।

८८- ले माल उनके से खैरात कि पवित्र करे तू उन को अर्थात् बाहरी और शुद्ध करे तू उन को साथ उन के अर्थात् गुप्त में।। निश्चय अल्लाह ने मोल ली हैं मुसलमानों से जानें उन की और माल उन के बदले, कि वास्ते उन के बहिश्त है। लडे़गें बीच मार्ग अल्लाह के बस मारेंगे और मर जावेंगे।। - मं० २। सि० ११। सू० ९। आ० १०३। १११।।

(समीक्षक) वाह जी वाह मुहम्मद साहेब! आपने तो गोकुलिये गुसांइयों की बराबरी कर ली क्योंकि उन का माल लेना और उन को पवित्र करना यही बात तो गुसांइयों की है। वाह खुदा जी! आपने अच्छी सौदागरी लगाई कि मुसलमानों के हाथ से अन्य गरीबों के प्राण लेना ही लाभ समझा और उन अनाथों को मरवा कर उन निर्दयी मनुष्यों को स्वर्ग देने से दया और न्याय से मुसलमानों का खुदा हाथ धो बैठा और अपनी खुदाई में बट्टा लगा के बुद्धिमान् धार्मिकों में घृणित हो गया।।८८।।

८९- ऐ लोगो जो ईमान लाये हो लड़ो उन लोगों से कि पास तुम्हारे हैं काफिरों से और चाहिये कि पावें बीच तुम्हारे दृढ़ता।। क्या नहीं देखते यह कि वे बलाओं में डाले जाते हैं बीच हर वर्ष के एक बार वा दो बार। फिर वे नहीं तोबा करते और न वे शिक्षा पकड़ते हैं।। - मं० २। सि० ११। सू० ९। आ० १२३। १२६।।

(समीक्षक) देखिये! ये भी एक विश्वासघात की बातें खुदा मुसलमानों को सिखलाता है कि चाहें पड़ोसी हो वा किसी के नौकर हों जब अवसर पावें तभी लड़ाई वा घात करें। ऐसी बातें मुसलमानों से बहुत बन गई हैं इसी कुरान के लेख से। अब तो मुसलमान समझ के इन कुरानोक्त बुराइयों को छोड़ दें तो बहुत अच्छा है।।८९।।

९०- निश्चय परवरदिगार तुम्हारा अल्लाह है जिस ने पैदा किया आसमानों और पृथिवी को बीच छः दिन के। फिर करार पकड़ा ऊपर अर्श के, तदबीर करता है काम की।। - मं० ३। सि० ११। सू० १०। आ० ३।।

(समीक्षक) आसमान आकाश एक और बिना बना अनादि है। उस का बनाना लिखने से निश्चय हुआ कि वह कुरानकर्त्ता पदार्थविद्या को नहीं जानता था? क्या परमेश्वर के सामने छः दिन तक बनाना पड़ता है? तो जो ‘हो मेरे हुक्म से और हो गया’ जब कुरान में ऐसा लिखा है फिर छः दिन कभी नहीं लग सकते।। इससे छः दिन लगना झूठ है। जो वह व्यापक होता तो ऊपर अर्श के क्यों ठहरता? और जब काम की तदबीर करता है तो ठीक तुम्हारा खुदा मनुष्य के समान है क्योंकि जो सर्वज्ञ है वह बैठा-बैठा क्या तदबीर करेगा? इस से विदित होता है कि ईश्वर को न जानने वाले जंगली लोगों ने यह पुस्तक बनाया होगा।।९०।।

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Allah is biased towards Muslims, who if so, commits wrongdoing. Otherwise, God is all of creation. Can God not listen without calling? Is deaf? And isn't it a bad thing to share Rasool with him? Which treasure is full of Allah who will steal? Should he steal everything from Rasool and his Amanat theft? Can such preaching be for the ignorant and the unrighteous? Okey! Why is the person who does Capricorn and who is the companion of Capricorn who is not insidious, leery and unrighteous? Therefore, this Quran is not made of God.

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