विशेष सूचना - Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज संस्कार केन्द्र इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी रायपुर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित रायपुर में एकमात्र केन्द्र है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज संस्कार केन्द्र इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी के अतिरिक्त रायपुर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Sanskar Kendra Indraprastha Colony Raipur is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Sanskar Kendra Indraprastha Colony Raipur is the only controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Chhattisgarh. We do not have any other branch or Centre in Raipur. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
arya samaj marriage indore india legal

चौदहवें समुल्लास भाग -7

१११- और निश्चय क्षमा करने वाला हूँ वास्ते उस मनुष्य के तोबाः की और ईमान लाया और कर्म किये अच्छे, फिर मार्ग पाया।। - मं० ४। सि० १६। सू० २०। आ० ८२।।

(समीक्षक) जो तोबाः से पाप क्षमा करने की बात कुरान में है यह सब को पापी कराने वाली है क्योंकि पापियों को इस से पाप करने का साहस बहुत बढ़ जाता है। इस से यह पुस्तक और इस का बनाने वाला पापियों को पाप करने में हौसला बढ़ाने वाले हैं। इस से यह पुस्तक परमेश्वरकृत और इस में कहा हुआ परमेश्वर भी नहीं हो सकता।।१११।।

११२- और किये हम ने बीच पृथिवी के पहाड़ ऐसा न हो कि हिल जावे।। - मं० ४। सि० १७। सू० २१। आ० ३०।।

(समीक्षक) यदि कुरान का बनाने वाला पृथिवी का घूमना आदि जानता तो यह बात कभी नहीं कहता कि पहाड़ों के धरने से पृथिवी नहीं हिलती। शंका हुई कि जो पहाड़ नहीं धरता तो हिल जाती! इतने कहने पर भी भूकम्प में क्यों डिग जाती है? ।।११२।।

११३- और शिक्षा दी हमने उस औरत को और रक्षा की उसने अपने गुह्य अंगों की। बस फूंक दिया हम ने बीच उस के रूह अपनी को।। - मं० ४। सि० १७। सू० २१। आ० ९१।।

(समीक्षक) ऐसी अश्लील बातें खुदा की पुस्तक में खुदा की क्या और सभ्य मनुष्य की भी नहीं होतीं। जब कि मनुष्यों में ऐसी बातों का लिखना अच्छा नहीं तो परमेश्वर के सामने क्योंकर अच्छा हो सकता है? ऐसी-ऐसी बातों से कुरान दूषित होता है। यदि अच्छी बात होती तो अति प्रशंसा होती; जैसे वेदों की।।११३।।

११४- क्या नहीं देखा तूने कि अल्लाह को सिजदा करते हैं जो कोई बीच आसमानों और पृथिवी के हैं, सूर्य और चन्द्र तारे और पहाड़, वृक्ष और जानवर।। पहिनाये जावेंगे बीच उस के कंगन सोने और मोती के और पहिनावा उन का बीच उसके रेशमी है।। और पवित्र रख घर मेरे को वास्ते गिर्द फिरने वालों के और खड़े रहने वालों के।। फिर चाहिये कि दूर करें मैल अपने और पूरी करें भेंटें अपनी और चारों ओर फिरें घर कदीम के।। ताकि नाम अल्लाह का याद करें।। - मं० ४। सि० १७। सू० २२। आ० १८। २३। २६। २८। ३३।।

(समीक्षक) भला! जो जड़ वस्तु हैं, परमेश्वर को जान ही नहीं सकते, फिर वे उस की भक्ति क्योंकर कर सकते हैं? इस से यह पुस्तक ईश्वरकृत तो कभी नहीं हो सकता किन्तु किसी भ्रान्त का बनाया हुआ दीखता है। वाह! बड़ा अच्छा स्वर्ग है जहाँ सोने मोती के गहने और रेशमी कपड़े पहिरने को मिलें। यह बहिश्त यहां के राजाओं के घर से अधिक नहीं दीख पड़ता। और जब परमेश्वर का घर है तो वह उसी घर में रहता भी होगा फिर बुत्परस्ती क्यों न हुई? और दूसरे बुत्परस्तों का खण्डन क्यों करते हैं? जब खुदा भेंट लेता, अपने घर की परिक्रमा करने की आज्ञा देता है और पशुओं को मरवा के खिलाता है तो यह खुदा मन्दिर वाले और भैरव, दुर्गा के सदृश हुआ और महाबुत्परस्ती का चलाने वाला हुआ क्योंकि मूर्तियों से मस्जिद बड़ा बुत् है। इस से खुदा और मुसलमान बड़े बुत्परस्त और पुराणी तथा जैनी छोटे बुत्परस्त हैं।।११४।।

११५- फिर निश्चय तुम दिन कयामत के उठाये जाओगे।। - मं० ४। सि० १८। सू० २३। आ० १६।।

(समीक्षक) कयामत तक मुर्दे कबरों में रहेंगे वा किसी अन्य जगह? जो उन्हीं में रहेंगे तो सड़े हुए दुर्गन्धरूप शरीर में रहकर पुण्यात्मा भी दुःख भोग करेंगे? यह न्याय अन्याय है। और दुर्गन्ध अधिक होकर रोगोत्पत्ति करने से खुदा और मुसलमान पापभागी होंगे।।११५।।

११६- उस दिन की गवाही देवेंगे ऊपर उन के जबानें उन की और हाथ उन के और पांव उन के साथ उस वस्तु के कि थे करते।। अल्लाह नूर है आसमानों का और पृथिवी का, नूर उस के कि मानिन्द ताक की है बीच उस के दीप हो और दीप बीच कंदील शीशों के हैं, वह कंदील मानो कि तारा है चमकता, रोशन किया जाता है दीपक वृक्ष मुबारिक जैतून के से, न पूर्व की ओर है न पश्चिम की, समीप है तेल उस का रोशन हो जावे जो न लगे ऊपर रोशनी के मार्ग दिखाता है अल्लाह नूर अपने के जिस को चाहता है।। - मं० ४। सि० १८। सू० २४। आ० २४। ३५।।

(समीक्षक) हाथ पग आदि जड़ होने से गवाही कभी नहीं दे सकते यह बात सृष्टिक्रम से विरुद्ध होने से मिथ्या है। क्या खुदा आगी बिजुली है? जैसा कि दृष्टान्त देते हैं ऐसा दृष्टान्त ईश्वर में नहीं घट सकता। हां! किसी साकार वस्तु में घट सकता है।।११६।।

११७- और अल्लाह ने उत्पन्न किया हर जानवर को पानी से बस कोई उन में से वह है कि जो चलता है पेट अपने के।। और जो कोई आज्ञा पालन करे अल्लाह की रसूल उस के की।। कह आज्ञा पालन करे खुदा की रसूल उस के की और आज्ञा पालन करो रसूल की ताकि दया किये जाओ।। - मं० ४। सि० १८। सू० २४। आ० ४५। ५२। ५६।।

(समीक्षक) यह कौन सी फिलासफी है कि जिन जानवरों के शरीर में सब तत्त्व दीखते हैं और कहना कि केवल पानी से उत्पन्न किये। यह केवल अविद्या की बात है। जब अल्लाह के साथ पैगम्बर की आज्ञा पालन करना होता है तो खुदा का शरीक हो गया वा नहीं? यदि ऐसा है तो क्यों खुदा को लाशरीक कुरान में लिखा और कहते हो? ।।११७।।

११८- और जिस दिन कि फट जावेगा आसमान साथ बदली के और उतारे जावेंगे फरिश्ते।। बस मत कहा मान काफिरों का और झगड़ा कर उन से साथ झगड़ा बढ़ा ।। और बदल डालता है अल्लाह बुराइयों उन की को भलाइयों से।। और जो कोई तोबाः करे और कर्म करे अच्छे बस निश्चय आता है तरफ अल्लाह की।। - मं० ४। सि० १९। सू० २५। आ० २५-५२। ७०। ७१।।

(समीक्षक) यह बात कभी सच नहीं हो सकती है कि आकाश बद्दलों के साथ फट जावे। यदि आकाश कोई र्मूर्त्तिमान् पदार्थ हो तो फट सकता है। यह मुसलमानों का कुरान शान्ति भंग कर गदर झगड़ा मचाने वाला है। इसीलिये धार्मिक विद्वान् लोग इस को नहीं मानते। यह भी अच्छा न्याय है कि जो पाप और पुण्य का अदला बदला हो जाय। क्या यह तिल और उड़द की सी बात है जो पलटा हो जावे? जो तोबा करने से पाप छूटे और ईश्वर मिले तो कोई भी पाप करने से न डरे। इसलिये ये सब बातें विद्या से विरुद्ध हैं।।११८।।

११९- वही की हम ने तरफ मूसा की यह कि ले चल रात को बन्दों मेरे को, निश्चय तुम पीछा किये जाओगे।। बस भेजे लोग फिरोन ने बीच नगरों के जमा करने वाले।। और वह पुरुष कि जिसने पैदा किया मुझ को है, बस वही मार्ग दिखलाता है।। और वह जो खिलाता है मुझ को पिलाता है मुझ को।। और उस पुरुष की आशा रखता हूँ मैं यह कि क्षमा करे वास्ते मेरे अपराध मेरा दिन कयामत के।। - मं० ५। सि० १९। सू० २६। आ० ५२। ५३। ७८। ७९। ८२।।

(समीक्षक) जब खुदा ने मूसा की ओर बही भेजी पुनः दाऊद, ईसा और मुहम्मद साहेब की ओर किताब क्यों भेजी? क्योंकि परमेश्वर की बात सदा एक सी और बेभूल होती है और उस के पीछे कुरान तक पुस्तकों का भेजना पहली पुस्तक को अपूर्ण भूलयुक्त माना जायगा। यदि ये तीन पुस्तक सच्चे हैं तो यह कुरान झूठा होगा। चारों का जो कि परस्पर प्रायः विरोध रखते हैं उन का सर्वथा सत्य होना नहीं हो सकता। यदि खुदा ने रूह अर्थात् जीव पैदा किये हैं तो वे मर भी जायेंगे अर्थात् उन का कभी नाश कभी अभाव भी होगा? जो परमेश्वर ही मनुष्यादि प्राणियों को खिलाता पिलाता है तो किसी को रोग होना न चाहिये और सब को तुल्य भोजन देना चाहिये । पक्षपात से एक को उत्तम और दूसरे को निकृष्ट जैसा कि राजा और कंगले को श्रेष्ठ निकृष्ट भोजन मिलता है; न होना चाहिये। जब परमेश्वर ही खिलाने पिलाने और पथ्य कराने वाला है तो रोग ही न होने चाहिये परन्तु मुसलमान आदि को भी रोग होते हैं। यदि खुदा ही रोग छुड़ा कर आराम करने वाला है तो मुसलमानों के शरीरों में रोग न रहना चाहिये। यदि रहता है तो खुदा पूरा वैद्य नहीं है यदि पूरा वैद्य है तो मुसलमानों के शरीरों में रोग क्यों रहते हैं? यदि वही मारता और जिलाता है तो उसी खुदा को पाप पुण्य लगता होगा। यदि जन्म जन्मान्तर के कर्मानुसार व्यवस्था करता है तो उस को कुछ भी अपराध नहीं। यदि वह पाप क्षमा और न्याय कयामत की रात में करता है तो खुदा पाप बढ़ाने वाला होकर पापयुक्त होगा। यदि क्षमा नहीं करता तो यह कुरान की बात झूठी होने से बच नहीं सकती है।।११९।।

१२०- नहीं तू परन्तु आदमी मानिन्द हमारी बस ले आ कुछ निशानी जो है तू सच्चों से।। कहा यह ऊंटनी है वास्ते उस के पानी पीना है एक बार।। - मं० ५। सि० १९। सू० २६। आ० १५४। १५५।।

(समीक्षक) भला! इस बात को कोई मान सकता है कि पत्थर से ऊंटनी निकले! वे लोग जंगली थे कि जिन्होंने इस बात को मान लिया। और ऊंटनी की निशानी देनी केवल जंगली व्यवहार है; ईश्वरकृत नहीं। यदि यह किताब ईश्वरकृत होती तो ऐसी व्यर्थ बातें इस में न होतीं।।१२०।।

१२१- ऐ मूसा बात यह है कि निश्चय मैं अल्लाह हूँ गालिब।। और डाल दे असा अपना, बस जब कि देखा उस को हिलता था मानो कि वह सांप है—ऐ मूसा मत डर, निश्चय नहीं डरते समीप मेरे पैगम्बर।। अल्लाह नहीं कोई माबूद परन्तु वह मालिक अर्श बड़े का।। यह कि मत सरकशी करो ऊपर मेरे और चले आओ मेरे पास मुसलमान होकर।। - मं० ५। सि० १९। सू० २७। आ० ९। १०। २६। ३१।।

(समीक्षक) और भी देखिये अपने मुख आप अल्लाह बड़ा जबरदस्त बनता है। अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना श्रेष्ठ पुरुष का भी काम नहीं; खुदा का क्योंकर हो सकता है? तभी तो इन्द्रजाल का लटका दिखला जंगली मनुष्यों को वश कर आप जंगलस्थ खुदा बन बैठा। ऐसी बात ईश्वर के पुस्तक में कभी नहीं हो सकती। यदि वह बड़े अर्श अर्थात् सातवें आसमान का मालिक है तो वह एकदेशी होने से ईश्वर ही नहीं हो सकता है। यदि सरकशी करना बुरा है तो खुदा और मुहम्मद साहेब ने अपनी स्तुति से पुस्तक क्यों भर दिये? मुहम्मद साहेब ने अनेकों को मारे इस से सरकशी हुई वा नहीं? यह कुरान पुनरुक्त और पूर्वापर विरुद्ध बातों से भरा हुआ है।।१२१।।

१२२- और देखेगा तू पहाड़ों को अनुमान करता है तू उन को जमे हुए और वे चले जाते हैं मानिन्द चलने बादलों की, कारीगरी अल्लाह की जिसने दृढ़ किया हर वस्तु को, निश्चय वह खबरदार है उस वस्तु के कि करते हो।। - मं० ५। सि० २०। सू० २७। आ० ८७। ८८।।

(समीक्षक) बद्दलों के समान पहाड़ का चलना कुरान बनाने वालों के देश में होता होगा; अन्यत्र नहीं। और खुदा की खबरदारी तो शैतान बाजी को न पकड़ने और न दण्ड देने से ही विदित होती है कि जिस ने एक बाजी को भी अब तक न पकड़ पाया; न दण्ड दिया। इस से अधिक असावधानी क्या होगी।।१२२।।

१२३- बस मुष्ट मारा उस को मूसा ने, बस पूरी की आयु उस की।। कहा ऐ रब मेरे, निश्चय मैंने अन्याय किया जान अपनी को, बस क्षमा कर मुझ को, बस क्षमा कर दिया उस को, निश्चय वह क्षमा करने वाला दयालु है।। और मालिक तेरा उत्पन्न करता है, जो कुछ चाहता है और पसन्द करता है।। - मं० ५। सि० २०। सू० २८। आ० १५। १६। ६८।।

(समीक्षक) अब अन्य भी देखिये मुसलमान और ईसाइयों के पैगम्बर और खुदा कि मूसा पैगम्बर मनुष्य की हत्या किया करे और खुदा क्षमा किया करे। ये दोनों अन्यायकारी हैं वा नहीं? क्या अपनी इच्छा ही से जैसा चाहता है वैसी उत्पत्ति करता है? क्या उस ने अपनी इच्छा ही से एक को राजा दूसरे को कंगाल और एक को विद्वान् दूसरे को मूर्खादि किया है? यदि ऐसा है तो न कुरान सत्य और न अन्यायकारी होने से यह खुदा ही हो सकता है।।१२३।।

१२४- और आज्ञा दी हम ने मनुष्य को साथ मा बाप के भलाई करना और जो झगड़ा करें तुझ से दोनों यह कि शरीक लावे तू साथ मेरे उस वस्तु को, कि नहीं वास्ते तेरे साथ उस के ज्ञान, बस मत कहा मान उन दोनों का, तर्फ मेरी है।। और अवश्य भेजा हम ने नूह को तर्फ कौम उस के कि बस रहा बीच उन के हजार वर्ष परन्तु पचास वर्ष कम।। - मं० ५। सि० २०। सू० २९। आ० ८। १४।।

(समीक्षक) माता-पिता की सेवा करना अच्छा ही है जो खुदा के साथ शरीक करने के लिये कहे तो उन का कहना न मानना यह भी ठीक है परन्तु यदि माता पिता मिथ्याभाषणादि करने की आज्ञा देवें तो क्या मान लेना चाहिये? इसलिये यह बात आवमी अच्छी और आधी बुरी है। क्या नूह आदि पैगम्बरों ही को खुदा संसार में भेजता है तो अन्य जीवों को कौन भेजता है? यदि सब को वही भेजता है तो सभी पैगम्बर क्यों नहीं? और जो प्रथम मनुष्यों की हजार वर्ष की आयु होती थी तो अब क्यों नहीं होती? इसलिये यह बात ठीक नहीं।।१२४।।

१२५- अल्लाह पहिली बार करता है उत्पत्ति, फिर दूसरी बार करेगा उस को, फिर उसी की ओर फेरे जाओगे।। और जिस दिन वर्षा अर्थात् खड़ी होगी कयामत निराश होंगे पापी।। बस जो लोग कि ईमान लाये और काम किये अच्छे बस वे बीच बाग के सिंगार किये जावेंगे।। और जो भेज दें हम एक बाव, बस देखें उसी खेती को पीली हुई।। इसी प्रकार मोहर रखता है अल्लाह ऊपर दिलों उन लोगों के कि नहीं जानते।। - मं० ५। सि० २१। सू० ३०। आ० ११। १२। १५। ५१। ५९।।

(समीक्षक) यदि अल्लाह दो बार उत्पत्ति करता है तीसरी बार नहीं तो उत्पत्ति की आदि और दूसरी बार के अन्त में निकम्मा बैठा रहता होगा? और एक तथा दो बार उत्पत्ति के पश्चात् उस का सामर्थ्य निकम्मा और व्यर्थ हो जायगा। यदि न्याय करने के दिन पापी लोग निराश हों तो अच्छी बात है परन्तु इस का प्रयोजन यह तो कहीं नहीं है कि मुसलमानों के सिवाय सब पापी समझ कर निराश किये जायें? क्योंकि कुरान में कई स्थानों में पापियों से औरों का ही प्रयोजन है। यदि बगीचे में रखना और शृंगार पहिराना ही मुसलमानों का स्वर्ग है तो इस संसार के तुल्य हुआ और वहाँ माली और सुनार भी होंगे अथवा खुदा ही माली और सुनार आदि का काम करता होगा। यदि किसी को कम गहना मिलता होगा तो चोरी भी होती होगी और बहिश्त से चोरी करने वालों को दोजख में भी डालता होगा। यदि ऐसा होता होगा तो सदा बहिश्त में रहेंगे यह बात झूठ हो जायगी। जो किसानों की खेती पर भी खुदा की दृष्टि है सो यह विद्या खेती करने के अनुभव ही से होती है। और यदि माना जाय कि खुदा ने अपनी विद्या से सब बात जान ली है तो ऐसा भय देना अपना घमण्ड प्रसिद्ध करना है। यदि अल्लाह ने जीवों के दिलों पर मोहर लगा पाप कराया तो उस पाप का भागी वही होवे जीव नहीं हो सकते। जैसे जय पराजय सेनाधीश का होता है वैसे यह सब पाप खुदा ही को प्राप्त होवे।।१२५।।

१२६- ये आयतें हैं किताब हिक्मत वाले की।। उत्पन्न किया आसमानों को बिना सुतून अर्थात् खम्भे के देखते हो तुम उस को और डाले बीच पृथिवी के पहाड़ ऐसा न हो कि हिल जावे।। क्या नहीं देखा तूने यह कि अल्लाह प्रवेश कराता है दिन को बीच रात के।। क्या नहीं देखा कि किश्तियां चलती हैं बीच दर्य्या के साथ निआमतों अल्लाह के, ताकि दिखलावे तुम को निशानियां अपनी।। - मं० ५। सि० २१। सू० ३१। आ० २। १०। २९। ३१।।

(समीक्षक) वाह जी वाह! हिक्मतवाली किताब ! कि जिस में सर्वथा विद्या से विरुद्ध आकाश की उत्पत्ति और उस में खम्भे लगाने की शंका और पृथिवी को स्थिर रखने के लिये पहाड़ रखना। थोड़ी सी विद्या वाला भी ऐसा लेख कभी नहीं करता और न मानता और हिक्मत देखो कि जहाँ दिन है वहाँ रात नहीं और जहाँ रात है वहाँ दिन नहीं। उस को एक दूसरे में प्रवेश कराना लिखता है यह बड़े अविद्वानों की बात है। इसलिये यह कुरान विद्या की पुस्तक नहीं हो सकती। क्या यह विद्याविरुद्ध बात नहीं है कि नौका मनुष्य और क्रिया कौशलादि से चलती हैं वा खुदा की कृपा से? यदि लोहे वा पत्थरों की नौका बना कर समुद्र में चलावें तो खुदा की निशानी डूब जाय वा नहीं? इसलिये यह पुस्तक न विद्वान् और न ईश्वर का बनाया हुआ हो सकता है।।१२६।।

१२७- तदबीर करता है काम की आसमान से तर्फ पृथिवी की फिर चढ़ जाता है तर्फ उस की बीच एक दिन के कि है अवधि उसकी सहस्र वर्ष उन वर्षों से कि गिनते हो तुम।। यह है जानने वाला गैब का और प्रत्यक्ष का गालिब दयालु।। फिर पुष्ट किया उस को और फूंका बीच रूह अपनी से।। कह कब्ज करेगा तुम को फरिश्ता मौत का वह जो नियत किया गया है साथ तुम्हारे।। और जो चाहते हम अवश्य देते हम हर एक जीव को शिक्षा उस की, परन्तु सिद्ध हुई बात मेरी ओर से कि अवश्य भरूँगा मैं दोजख को जिनों से और आदमियों से इकट्ठे।। - मं० ५। सि० २१। सू० ३२। आ० ५। ६। ९। ११। १३।।

(समीक्षक) अब ठीक सिद्ध हो गया कि मुसलमानों का खुदा मनुष्यवत् एकदेशी है। क्योंकि जो व्यापक होता तो एकदेश से प्रबन्ध करना और उतरना चढ़ना नहीं हो सकता। यदि खुदा फरिश्ते को भेजता है तो भी आप एकदेशी हो गया। आप आसमान पर टंगा बैठा है और फरिश्तों को दौड़ाता है। यदि फरिश्ते रिश्वत लेकर कोई मामला बिगाड़ दें वा किसी मुर्दे को छोड़ जायें तो खुदा को क्या मालूम हो सकता है? मालूम तो उस को हो कि जो सर्वज्ञ तथा सर्वव्यापक हो, सो तो है ही नहीं; होता तो फरिश्तों के भेजने तथा कई लोगों की कई प्रकार से परीक्षा लेने का क्या काम था? और एक हजार वर्षों में तथा आने जाने प्रबन्ध करने से सर्वशक्तिमान् भी नहीं। यदि मौत का फरिश्ता है तो उस फरिश्ते का मारने वाला कौन सा मृत्यु है? यदि वह नित्य है तो अमरपन में खुदा के बराबर शरीक हुआ। एक फरिश्ता एक समय में दोजख भरने के लिये जीवों को शिक्षा नहीं कर सकता और उन को विना पाप किये अपनी मर्जी से दोजख भर के उन को दुःख देकर तमाशा देखता है तो वह खुदा पापी अन्यायकारी और दयाहीन है! ऐसी बातें जिस पुस्तक में हों न वह विद्वान् और ईश्वरकृत और जो दया न्यायहीन है वह ईश्वर भी कभी नहीं हो सकता।।१२७।।

१२८- कह कि कभी न लाभ देगा भागना तुम को जो भागो तुम मृत्यु वा कत्ल से।। ऐ बीबियो नबी की! जो कोई आवे तुम में से निर्लज्जता प्रत्यक्ष के, दुगुणा किया जायेगा वास्ते उसके अजाब और है यह ऊपर अल्लाह के सहल।। - मं० ५। सि० २१। सू० ३३। आ० १५। ३०।।

(समीक्षक) यह मुहम्मद साहेब ने इसलिये लिखा लिखवाया होगा कि लड़ाई में कोई न भागे, हमारा विजय होवे, मरने से भी न डरे, ऐश्वर्य बढ़े, मजहब बढ़ा लेवें? और यदि बीबी निर्लज्जता से न आवे तो क्या पैगम्बर साहेब निर्लज्ज हो कर आवें? बीबियों पर अजाब हो और पैगम्बर साहेब पर अजाब न होवे। यह किस घर का न्याय है? ।।१२८।।

१२९- और अटकी रहो बीच घरों अपने के, आज्ञा पालन करो अल्लाह और रसूल की; सिवाय इसके नहीं।। बस जब अदा कर ली जैद ने हाजित उस से, ब्याह दिया हम ने तुझ से उस को ताकि न होवे ऊपर ईमान वालों के तंगी बीच बीबियों से ले पालकों उन के के, जब अदा कर लें उन से हाजित और है आज्ञा खुदा की की गई।। नहीं है ऊपर नबी के कुछ तंगी बीच उस वस्तु के।। नहीं है मुहम्मद बाप किसी मर्द का।। और हलाल की स्त्री ईमानवाली जो देवे बिना महर के जान अपनी वास्ते नबी के।। ढील देवे तू जिस को चाहे उन में से और जगह देवे तर्फ अपनी जिस को चाहे, नहीं पाप ऊपर तेरे।। ऐ लोगो! जो ईमान लाये हो मत प्रवेश करो घरों में पैगम्बर के।। - मं० ५। सि० २२। सू० ३३। आ० ३३। ३६। ३७। ४०। ५०। ५१। ५२।।

(समीक्षक) यह बड़े अन्याय की बात है कि स्त्री घर में कैद के समान रहे और पुरुष खुल्ले रहें। क्या स्त्रियों का चित्त शुद्ध वायु, शुद्ध देश में भ्रमण करना, सृष्टि के अनेक पदार्थ देखना नहीं चाहता होगा? इसी अपराध से मुसलमानों के लड़के विशेषकर सयलानी और विषयी होते हैं। अल्लाह और रसूल की एक अविरुद्ध आज्ञा है वा भिन्न-भिन्न विरुद्ध? यदि एक है तो दोनों की आज्ञा पालन करो कहना व्यर्थ है और जो भिन्न-भिन्न विरुद्ध है तो एक सच्ची और दूसरी झूठी? एक खुदा दूसरा शैतान हो जायगा? और शरीक भी होगा? वाह कुरान का खुदा और पैगम्बर तथा कुरान को! जिस को दूसरे का मतलब नष्ट कर अपना मतलब सिद्ध करना इष्ट हो ऐसी लीला अवश्य रचता है। इस से यह भी सिद्ध हुआ कि मुहम्मद साहेब बड़े विषयी थे। यदि न होते तो (लेपालक) बेटे की स्त्री को जो पुत्र की स्त्री थी; अपनी स्त्री क्यों कर लेते? और फिर ऐसी बातें करने वाले का खुदा भी पक्षपाती बना और अन्याय को न्याय ठहराया। मनुष्यों में जो जंगली भी होगा वह भी बेटे की स्त्री को छोड़ता है और यह कितनी बड़ी अन्याय की बात है कि नबी को विषयासक्ति की लीला करने में कुछ भी अटकाव नहीं होना! यदि नबी किसी का बाप न था तो जैद (लेपालक) बेटा किस का था? और क्यों लिखा? यह उसी मतलब की बात है कि जिस से बेटे की स्त्री को भी घर में डालने से पैगम्बर साहेब न बचे, अन्य से क्योंकर बचे होंगे? ऐसी चतुराई से भी बुरी बात में निन्दा होना कभी नहीं छूट सकता। क्या जो कोई पराई स्त्री भी नबी से प्रसन्न होकर निकाह करना चाहे तो भी हलाल है? और यह महा अधर्म की बात है कि नबी तो जिस स्त्री को चाहे छोड़ देवे और मुहम्मद साहेब की स्त्री लोग यदि पैगम्बर अपराधी भी हो तो कभी न छोड़ सकें! जैसे पैगम्बर के घरों में अन्य कोई व्यभिचार दृष्टि से प्रवेश न करें तो वैसे पैगम्बर साहेब भी किसी के घर में प्रवेश न करें। क्या नबी जिस किसी के घर में चाहें निशंक प्रवेश करें और माननीय भी रहें? भला! कौन ऐसा हृदय का अन्धा है कि जो इस कुरान को ईश्वरकृत और मुहम्मद साहेब को पैगम्बर और कुरानोक्त ईश्वर को परमेश्वर मान सके। बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसे युक्तिशून्य धर्मविरुद्ध बातों से युक्त इस मत को अर्ब देशनिवासी आदि मनुष्यों ने मान लिया!।।१२९।।

१३०- नहीं योग्य वास्ते तुम्हारे यह कि दुःख दो रसूल को, यह कि निकाह करो बीबियों उस की को पीछे उस के कभी, निश्चय यह है समीप अल्लाह के बड़ा पाप।। निश्चय जो लोग कि दुःख देते हैं अल्लाह को और रसूल उस के को, लानत की है उन को अल्लाह ने।। और वे लोग कि दुःख देते हैं मुसलमानों को और मुसलमान औरतों को विना इस के, बुरा किया है उन्होंने बस निश्चय उठाया उन्होंने बोहतान अर्थात् झूठ और प्रत्यक्ष पाप।। लानत मारे, जहाँ पाये जावें पकड़े जावें कतल किये जावें खूब मारा जाना।। ऐ रब हमारे, दे उन को द्विगुणा अजाब से और लानत से बड़ी लानत कर।। - मं० ५। सि० २२। सू० ३३। आ० ५३। ५४। ५५। ६१। ६८।।

(समीक्षक) वाह! क्या खुदा अपनी खुदाई को धर्म के साथ दिखला रहा है? जैसे रसूल को दुःख देने का निषेध करना तो ठीक है परन्तु दूसरे को दुःख देने में रसूल को भी रोकना योग्य था सों क्यों न रोका? क्या किसी के दुःख देने से अल्लाह भी दुःखी हो जाता है? यदि ऐसा है तो वह ईश्वर ही नहीं हो सकता। क्या अल्लाह और रसूल को दुःख देने का निषेध करने से यह नहीं सिद्ध होता कि अल्लाह और रसूल जिस को चाहें दुःख देवें? अन्य सब को दुःख देना चाहिये? जैसे मुसलमानों और मुसलमानों की स्त्रियों को दुःख देना बुरा है तो इन से अन्य मनुष्यों को दुःख देना भी अवश्य बुरा है।। जो ऐसा न माने तो उस की यह बात भी पक्षपात की है। वाह गदर मचाने वाले खुदा और नबी! जैसे ये निर्दयी संसार में हैं वैसे और बहुत थोड़े होंगे। जैसा यह कि अन्य लोग जहाँ पाये जावें, मारे जावें पकड़े जावें, लिखा है वैसी ही मुसलमानों पर कोई आज्ञा देवे तो मुसलमानों को यह बात बुरी लगेगी वा नहीं? वाह क्या हिंसक पैगम्बर आदि हैं कि जो परमेश्वर से प्रार्थना करके अपने से दूसरों को दुगुण दुःख देने के लिये प्रार्थना करना लिखा है। यह भी पक्षपात मतलबसिन्धुपन और महा अधर्म की बात है। इसी से अब तक भी मुसलमान लोगों में से बहुत से शठ लोग ऐसा ही कर्म करने में नहीं डरते। यह ठीक है कि सुशिक्षा के विना मनुष्य पशु के समान रहता है।।१३०।।

अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें -

क्षेत्रीय कार्यालय (रायपुर)
आर्य समाज संस्कार केन्द्र
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट रायपुर शाखा
वण्डरलैण्ड वाटरपार्क के सामने, DW-4, इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी
होण्डा शोरूम के पास, रिंग रोड नं.-1, रायपुर (छत्तीसगढ़) 
हेल्पलाइन : 9109372521
www.aryasamajonline.co.in 

 

राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com 

---------------------------------------

Regional Office (Raipur)
Arya Samaj Sanskar Kendra
Akhil Bharat Arya Samaj Trust Raipur Branch
Opposite Wondland Water Park
DW-4, Indraprastha Colony, Ring Road No.-1
Raipur (Chhattisgarh) 492010
Helpline No.: 9109372521
www.aryasamajonline.co.in 

 

National Administrative Office
Akhil Bharat Arya Samaj Trust
Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
Indore (M.P.) 452009
Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com 

 

It is a matter of great injustice that women should be like imprisoned at home and men should be open. Wouldn't the mind of women want to visit pure air, pure country and see many things of the universe? By this crime, the boys of Muslims are especially Sayalani and thematic. Is there a disobedient commandment of Allah and Rasool, or different? If there is one, then obey both, it is meaningless to say and one who is against different, one is true and the other is false? Will one god be another devil? Will there be more Wow God of the Quran and the Prophet and the Quran!

 

Fourteen Chapter Part - 7 of Satyarth Prakash (the Light of Truth) | Arya Samaj Raipur | Arya Samaj Mandir Raipur | Arya Samaj Mandir Marriage Helpline Raipur | Aryasamaj Mandir Helpline Raipur | inter caste marriage Helpline Raipur | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Raipur | Arya Samaj Raipur | Arya Samaj Mandir Raipur | arya samaj marriage Raipur | arya samaj marriage rules Raipur | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj Raipur | human rights in Raipur | human rights to marriage in Raipur | Arya Samaj Marriage Guidelines Raipur | inter caste marriage consultants in Raipur | court marriage consultants in Raipur | Arya Samaj Mandir marriage consultants in Raipur | arya samaj marriage certificate Raipur | Procedure of Arya Samaj Marriage Raipur | arya samaj marriage registration Raipur | arya samaj marriage documents Raipur | Procedure of Arya Samaj Wedding Raipur | arya samaj intercaste marriage Raipur | arya samaj wedding Raipur | arya samaj wedding rituals Raipur | arya samaj wedding legal Raipur | arya samaj shaadi Raipur | arya samaj mandir shaadi Raipur | arya samaj shadi procedure Raipur | arya samaj mandir shadi valid Raipur | arya samaj mandir shadi Raipur | inter caste marriage Raipur | validity of arya samaj marriage certificate Raipur | validity of arya samaj marriage Raipur | Arya Samaj Marriage Ceremony Raipur | Arya Samaj Wedding Ceremony Raipur | Documents required for Arya Samaj marriage Raipur | Arya Samaj Legal marriage service Raipur | Arya Samaj Pandits Helpline Raipur | Arya Samaj Pandits Raipur | Arya Samaj Pandits for marriage Raipur | Arya Samaj Temple Raipur | Arya Samaj Pandits for Havan Raipur | Arya Samaj Pandits for Pooja Raipur | Pandits for marriage Raipur | Pandits for Pooja Raipur | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction without Demolition Raipur | Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Raipur | Vedic Pandits Helpline Raipur | Hindu Pandits Helpline Raipur | Pandit Ji Raipur, Arya Samaj Intercast Matrimony Raipur | Arya Samaj Hindu Temple Raipur | Hindu Matrimony Raipur | सत्यार्थप्रकाश | वेद | महर्षि दयानन्द सरस्वती | विवाह समारोह, हवन | आर्य समाज पंडित | आर्य समाजी पंडित | अस्पृश्यता निवारणार्थ अन्तरजातीय विवाह | आर्य समाज मन्दिर | आर्य समाज मन्दिर विवाह | वास्तु शान्ति हवन | आर्य समाज मन्दिर आर्य समाज विवाह भारत | Arya Samaj Mandir Marriage Raipur Chhattisgarh India

  • महर्षि दयानन्द की मानवीय संवेदना

    महर्षि दयानन्द की मानवीय संवेदना महर्षि स्वामी दयानन्द अपने करुणापूर्ण चित्त से प्रेरित होकर गुरुदेव की आज्ञा लेकर देश का भ्रमण करने निकल पड़े। तथाकथित ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व था। सती प्रथा के नाम पर महिलाओं को जिन्दा जलाया जा रहा था। स्त्रियों को पढने का अधिकार नहीं था। बालविवाह, नारी-शिक्षा,...

    Read More ...

all india arya samaj marriage place
pandit requirement
Copyright © 2022. All Rights Reserved. aryasamajraipur.com