महर्षि दयानन्द की मानवीय संवेदना
महर्षि स्वामी दयानन्द अपने करुणापूर्ण चित्त से प्रेरित होकर गुरुदेव की आज्ञा लेकर देश का भ्रमण करने निकल पड़े। तथाकथित ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व था। सती प्रथा के नाम पर महिलाओं को जिन्दा जलाया जा रहा था। स्त्रियों को पढने का अधिकार नहीं था। बालविवाह, नारी-शिक्षा, विधवाओं पर अत्याचार, अंधविश्वास, पाखण्ड, जातिप्रथा जैसी न जाने कितनी कुरीतियों ने समाज को जकड़ रखा था। बलिप्रथा के नाम पर रक्त बह रहा था। इस दृश्य ने मूलशंकर को हिलाकर रख दिया। मानवीय संवेदना से भरा उनका चित्त बेचैन हो उठा। जब सारा आलम सोता था, वे रात को उठकर रोते थे।
वही प्रश्न जो ढाई हजार वर्ष पूर्व सिद्धार्थ ने उठाया था, फिर उठा। इस कुत्सित हिंसा और बलि के लिए जिम्मेदार कौन है? मानव मानव के बीच ऊँच-नीच की रेखा किसने खींची? नारी को पढने का अधिकार क्यों नहीं है? सबने एक ही स्वर में फिर वही जवाब दिया- वेद में लिखा है। यह वेदोक्त धर्म है।
प्रश्न भी लगभग वही था। उत्तर भी वही था। अन्तर था मूलशंकर और सिद्धार्थ की प्रतिक्रिया में। सिद्धार्थ ने बिना क्षण गंवाये कह दिया- मैं ऐसे वेद को नहीं मानता, जो समाज को हिंसा की प्रेरणा देता है। परन्तु मूलशंकर ने कहा- मुझे दिखाओ तो सही वेद में कहाँ लिखा है? मैं वेद का स्वाध्याय करूंगा। वेद पढूँगा, उसका और विवेचन करूँगा। महर्षि वेद के विरुद्ध नहीं हुए। उन्होंने वेदों को पढा और पाया कि वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है।
वेद के गम्भीर स्वाध्याय से आगे चलकर वे वेदों वाले स्वामी कहलाए। आधुनिक युग में वैदिक ज्ञान को विज्ञान से जोड़ने वाले वे प्रथम विद्वान थे। अगर महर्षि दयानन्द नहीं होते तो शायद हम सबके हर घर में एक सिद्धार्थ होता, जो वेद और वेदपोषित धर्म को नकार रहा होता। महर्षि ने न जाने कितने नास्तिकों को आस्तिक बनाया। अंग्रेजी शिक्षा की चकाचौंध से प्रभावित मुंशीराम, लेखराम और गुरुदत्त जैसे न जाने कितने युवाओं के मन को महर्षि के जीवन ने वैदिक ज्ञान की गंगा से परम पावन कर दिया था।
Maharishi Swami Dayanand, inspired by his compassionate mind, took the permission of Gurudev and set out to tour the country. The so-called Brahmins dominated the society. Women were being burnt alive in the name of Sati Pratha. Women did not have the right to study. Child marriage, women education, atrocities on widows, superstition, hypocrisy, caste system and many other evils had gripped the society. Blood was flowing in the name of sacrifice. This scene shook Mulshankar. His mind filled with human sensitivity became restless. When the whole world was sleeping, he would wake up at night and cry.
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