मौलिकता
आज सर्वत्र भय, अविश्वास, सन्देह और आशंका का साम्राज्य व्याप्त है। हर व्यक्ति बेहतर डरा हुआ है। अवांछनीय और अनुचित को जानते-मानते हुए उसे अस्वीकार करने का साहस नहीं होता। अपनी मौलिकता मानो मनुष्य ने खो दी है। अपने पास मानो उसकी कोई समझ है नहीं। कुसंस्कार उसे बुरी तरह से जकड़े हुए हैं। इन्हीं के चक्रव्यूह में फँसी हुई उसकी मनोभूमि एक प्रकार से पराधीनता के पाश में जकड़ी हुई है। ऐसे बंधित और बाधित व्यक्ति को शिक्षित कैसे कहा जाए ?
Today the empire of fear, mistrust, doubt and apprehension prevails everywhere. Everyone is better scared. Knowing and accepting what is undesirable and unfair, does not have the courage to reject it. Man has lost his originality. As if you have no understanding of it. The bad habits have bound him badly. Trapped in their maze, his psyche is in a way bound in the noose of dependence. How can such a bound and obstructed person be called educated?
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महर्षि दयानन्द की मानवीय संवेदना महर्षि स्वामी दयानन्द अपने करुणापूर्ण चित्त से प्रेरित होकर गुरुदेव की आज्ञा लेकर देश का भ्रमण करने निकल पड़े। तथाकथित ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व था। सती प्रथा के नाम पर महिलाओं को जिन्दा जलाया जा रहा था। स्त्रियों को पढने का अधिकार नहीं था। बालविवाह, नारी-शिक्षा,...