शिव संकल्प
शास्त्रकारों का यह कहना है कि मन की वृत्तियाँ बड़ी अद्भुत होती है। इस कारण कई दुष्ट प्रकृति के लोग मन की कुटिलताओं के कारण समाज और राष्ट्र में गड़बड़ी उत्पन्न कर देते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप अस्तव्यस्त हो जाता है और चहु ओर अशान्ति और अराजकता का वातावरण बन जाता है। जब मन सद्विचार वाला सन्तुष्ट वृत्ति वाला होता है, तब सुख भोग के अल्प साधनों के होते हुए भी अपने को आदमी बड़ा धनवान और भाग्यशाली समझाता है परन्तु असन्तोषी मन वाले की दशा इसके विपरीत होती है। मन की शुद्धता परमावश्यक है। यजुर्वेद में मन को शुद्ध संकल्प वाला बनाने के लिए बार-बार प्रार्थना की गई है- तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु। शिवसंकल्प वाला मन ही सयमी मन कहलाता है और यदि मन संयत हो जाए तो अज्ञान भी चकनाचूर हो जाता है।
धरना-ध्यान समाधि के तरीके से भी मन स्थिर किया जा सकता है और स्थिर मन वाला ही पत्थर को भी चमका देता है, जब पत्थर चमक उठा तो वह तो पत्थर न रहकर और ही बहुमूल्य हो गई।
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महर्षि दयानन्द की मानवीय संवेदना महर्षि स्वामी दयानन्द अपने करुणापूर्ण चित्त से प्रेरित होकर गुरुदेव की आज्ञा लेकर देश का भ्रमण करने निकल पड़े। तथाकथित ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व था। सती प्रथा के नाम पर महिलाओं को जिन्दा जलाया जा रहा था। स्त्रियों को पढने का अधिकार नहीं था। बालविवाह, नारी-शिक्षा,...