त्रयोदश समुल्लास भाग -2
११- और हनूक मतूसिलह की उत्पत्ति के पीछे तीन सौ वर्ष लों ईश्वर के साथ-साथ चलता था।। - तौरेत उत्पत्ति पर्व० ५। आ० २२।।
(समीक्षक) भला! ईसाइयों का ईश्वर मनुष्य न होता तो हनूक के साथ-साथ क्यों चलता? इससे जो वेदोक्त निराकार व्यापक ईश्वर है उसी को ईसाई लोग मानें तो उनका कल्याण होवे।।११।।
१२- और यों हुआ कि जब आदमी पृथिवी पर बढ़ने लगे और उनसे बेटियां उत्पन्न हुईं।। तो ईश्वर के पुत्रें ने आदम की पुत्रियों को देखा कि वे सुन्दरी हैं और उनमें से जिन्हें उन्होंने चाहा उन्हें व्याहा।। और उन दिनों में पृथिवी पर दानव थे और उसके पीछे भी जब ईश्वर के पुत्र आदम की पुत्रियों से मिले तो उनसे बालक उत्पन्न हुए जो बलवान् हुए जो आगे से नामी थे।। और ईश्वर ने देखा कि आदम की दुष्टता पृथिवी पर बहुत हुई और उनके मन की चिन्ता और भावना प्रतिदिन केवल बुरी होती है।। तब आदमी को पृथिवी पर उत्पन्न करने से परमेश्वर पछताया और उसे अति शोक हुआ।। तब परमेश्वर ने कहा कि आदमी को जिसे मैंने उत्पन्न किया; आदमी से लेके पशुन लों और रेंगवैयों को और आकाश के पक्षियों को पृथिवी पर से नष्ट करूंगा क्योंकि उन्हें बनाने से मैं पछताता हूँ।। -तौन पर्व० ६। आ० १। २। ३। ४। ५। ६।।
(समीक्षक) ईसाइयों से पूछना चाहिये कि ईश्वर के बेटे कौन हैं? और ईश्वर की स्त्री, सास, श्वसुर, साला, और सम्बन्धी कौन हैं? क्योंकि अब तो आदम की बेटियों के साथ विवाह होने से ईश्वर उनका सम्बन्धी हुआ और जो उनसे उत्पन्न होते हैं वे पुत्र और प्रपौत्र हुए। क्या ऐसी बात ईश्वर और ईश्वर के पुस्तक की हो सकती है? किन्तु यह सिद्ध होता है कि उन जंगली मनुष्यों ने यह पुस्तक बनाया है। वह ईश्वर ही नहीं जो सर्वज्ञ न हो; न भविष्यत् की बात जाने; वह जीव है। क्या जब सृष्टि की थी तब आगे मनुष्य दुष्ट होंगे ऐसा नहीं जानता था? और पछताना अति शोकादि होना भूल से काम करके पीछे पश्चात्ताप करना आदि ईसाइयों के ईश्वर में घट सकता है; वेदोक्त ईश्वर में नहीं। और इससे यह भी सिद्ध हो सकता है कि ईसाइयों का ईश्वर पूर्ण विद्वान् योगी भी नहीं था, नहीं तो शान्ति और विज्ञान से अति शोकादि से पृथक् हो सकता था। भला पशु पक्षी भी दुष्ट हो गये! यदि वह ईश्वर सर्वज्ञ होता तो ऐसा विषादी क्यों होता? इसलिये न यह ईश्वर और न यह ईश्वरकृत पुस्तक हो सकता है। जैसे वेदोक्त परमेश्वर सब पाप, क्लेश, दुःख, शोकादि से रहित ‘सच्चिदानन्दस्वरूप’ है उसको ईसाई लोग मानते वा अब भी मानें तो अपने मनुष्यजन्म को सफल कर सकें।।१२।।
१३- उस नाव की लम्बाई तीन सौ हाथ और चौड़ाई पचास हाथ और ऊँचाई तीस हाथ की होवे।। तू नाव में जाना तू और तेरे बेटे और तेरी पत्नी और तेरे बेटों की पत्नियां तेरे साथ।। और सारे शरीरों में से जीवता जन्तु दो-दो अपने साथ नाव में लेना जिसतें वे तेरे साथ जीते रहें वे नर और नारी होवें।। पंछी में से उसके भांति-भांति के और ढोर में से उसके भांति-भांति के और पृथिवी के हर एक रेंगवैये में से भाँति-भाँति के हर एक में से दो-दो तुझ पास आवें जिसते जीते रहें।। और तू अपने लिये खाने को सब सामग्री अपने पास इकट्ठा कर वह तुम्हारे और उनके लिये भोजन होगा।। सो ईश्वर की सारी आज्ञा के समान नूह ने किया।। - तौरेत उत्पत्ति पर्व० ६। आ० १५। १८। १९। २०। २१। २२।।
(समीक्षक) भला कोई भी विद्वान् ऐसी विद्या से विरुद्ध असम्भव बात के वक्ता को ईश्वर मान सकता है? क्योंकि इतनी बड़ी चौड़ी ऊंची नाव में हाथी, हथनी, ऊंट, ऊंटनी आदि क्रोड़ों जन्तु और उनके खाने पीने की चीजें वे सब कुटुम्ब के भी समा सकते हैं? यह इसीलिये मनुष्यकृत पुस्तक है। जिसने यह लेख किया है वह विद्वान् भी नहीं था।।१३।।
१४- और नूह ने परमेश्वर के लिए एक वेदी बनाई और सारे पवित्र पशु और हर एक पवित्र पंछियों में से लिये और होम की भेंट उस वेदी पर चढ़ाई।। और परमेश्वर ने सुगन्ध सूंघा और परमेश्वर ने अपने मन में कहा कि आदमी के लिये मैं पृथिवी को फिर कभी स्राप न दूँगा इस कारण कि आदमी के मन की भावना उसकी लड़काई से बुरी है और जिस रीति से मैंने सारे जीवधारियों को मारा फिर कभी न मारूंगा।। - तौरेत उत्पत्ति पर्व० ८। आ० २०। २१ ।।
(समीक्षक) वेदी के बनाने, होम करने के लेख से यही सिद्ध होता है कि ये बातें वेदों से बाइबल में गई हैं। क्या परमेश्वर के नाक भी है कि जिससे सुगन्ध सूँघा? क्या यह ईसाइयों का ईश्वर मनुष्यवत् अल्पज्ञ नहीं है कि कभी स्राप देता है और कभी पछताता है। कभी कहता है स्राप न दूंगा। पहले दिया था और फिर भी देगा। प्रथम सब को मार डाला और अब कहता है कि कभी न मारूंगा!!! ये बातें सब लड़केपन की हैं, ईश्वर की नहीं, और न किसी विद्वान् की क्योंकि विद्वान् की भी बात और प्रतिज्ञा स्थिर होती है।।१४।।
१५- और ईश्वर ने नूह को और उसके बेटों को आशीष दिया और उन्हें कहा कि हर एक जीता चलता जन्तु तुम्हारे भोजन के लिये होगा।। मैंने हरी तरकारी के समान सारी वस्तु तुम्हें दिईं केवल मांस उनके जीव अर्थात् उसके लोहू समेत मत खाना।। -तौरेत उत्पत्ति पर्व० ९। आ० १। २। ३। ४।।
(समीक्षक) क्या एक को प्राणकष्ट देकर दूसरों को आनन्द कराने से दयाहीन ईसाइयों का ईश्वर नहीं है? जो माता पिता एक लड़के को मरवा कर दूसरे को खिलावें तो महापापी नहीं हों? इसी प्रकार यह बात है क्योंकि ईश्वर के लिये सब प्राणी पुत्रवत् हैं। ऐसा न होने से इनका ईश्वर कसाईवत् काम करता है और सब मनुष्यों को हिसक भी इसी ने बनाये हैं। इसलिये ईसाइयों का ईश्वर निर्दय होने से पापी क्यों नहीं।।१५।।
१६- और सारी पृथिवी पर एक ही बोली और एक ही भाषा थी।। फिर उन्होंने कहा कि आओ हम एक नगर और एक गुम्मट जिसकी चोटी स्वर्ग लों पहुंचे अपने लिए बनावें और अपना नाम करें। न हो कि हम सारी पृथिवी पर छिन्न-भिन्न हो जायें।। तब परमेश्वर उस नगर और उस गुम्मट को जिसे आदम के सन्तान बनाते थे; देखने को उतरा।। तब परमेश्वर ने कहा कि देखो! ये लोग एक ही हैं और उन सब की एक ही बोली है। अब वे ऐसा-ऐसा कुछ करने लगे सो वे जिस पर मन लगावेंगे उससे अलग न किये जायेंगे।। आओ हम उतरें और वहां उनकी भाषा को गड़बड़ावें जिसते एक दूसरे की बोली न समझें।। तब परमेश्वर ने उन्हें वहां से सारी पृथिवी पर छिन्न-भिन्न किया और वे उस नगर के बनाने से अलग रहे।। - तौन उ० पर्व० ११। आ० १। ४। ५। ६। ७। ८।।
(समीक्षक) जब सारी पृथिवी पर एक भाषा और बोली होगी उस समय सब मनुष्यों को परस्पर अत्यन्त आनन्द प्राप्त हुआ होगा परन्तु क्या किया जाय, यह ईसाइयों के ईर्ष्यक ईश्वर ने सबकी भाषा गड़बड़ा के सब का सत्यानाश किया। उसने यह बड़ा अपराध किया। क्या यह शैतान के काम से भी बुरा काम नहीं है? और इससे यह भी विदित होता है कि ईसाइयों का ईश्वर सनाई पहाड़ आदि पर रहता था और जीवों की उन्नति भी नहीं चाहता था। यह विना एक अविद्वान् के ईश्वर की बात और यह ईश्वरोक्त पुस्तक क्यों कर हो सकता है? ।।१६।।
१७- तब उसने अपनी पत्नी सरी से कहा कि देख मैं जानता हूं तू देखने में सुन्दर स्त्री है।। इसलिये यों होगा कि जब मिस्री तुझे देखें तब वे कहेंगे कि यह उसकी पत्नी है और मुझे मार डालेंगे परन्तु तुझे जीती रखेंगे।। तू कहियो कि मैं उसकी बहिन हूं जिसते तेरे कारण मेरा भला होय और मेरा प्राण तेरे हेतु से जीता रहै।। - तौन उ० पर्व० १२। आ० ११। १२। १३।।
(समीक्षक) अब देखिये! जो अबिरहाम बड़ा पैगम्बर ईसाई और मुसलमानों का बजता है और उसके कर्म मिथ्याभाषणादि बुरे हैं भला! जिनके ऐसे पैगम्बर हों उनको विद्या वा कल्याण का मार्ग कैसे मिल सके? ।।१७।।
१८- और ईश्वर ने अब्राहम से कहा- तू और तेरे पीछे तेरा वंश उनकी पीढ़ियों में मेरे नियम को माने।। तुम मेरा नियम जो मुझ से और तुम से और तेरे पीछे तेरे वंश से है जिसे तुम मानोगे सो यह है कि तुम में से हर एक पुरुष का खतना किया जाय।। और तुम अपने शरीर की खलड़ी काटो और वह मेरे और तुम्हारे मध्य में नियम का चिह्न होगा। और तुम्हारी पीढ़ियों में हर एक आठ दिन के पुरुष का खतना किया जाय। जो घर में उत्पन्न होय अथवा जो किसी परदेशी से; जो तेरे वंश का न हो; रूपे से मोल लिया जाय।। जो तेरे घर में उत्पन्न हुआ हो और तेरे रूपे से मोल लिया गया हो; अवश्य उसका खतना किया जाय और मेरा नियम तुम्हारे मांस में सर्वदा नियम के लिये होगा।। और जो अखतना बालक जिसकी खलड़ी का खतना न हुआ हो सो प्राणी अपने लोग से कट जाय कि उसने मेरा नियम तोड़ा है।। - तौन उ० पर्व० १७। आ० ९। १०। ११। १२। १३। १४।।
(समीक्षक) अब देखिये ईश्वर की अन्यथा आज्ञा। कि जो यह खतना करना ईश्वर को इष्ट होता तो उस चमडे़ को आदि सृष्टि में बनाता ही नहीं और जो यह बनाया गया है वह रक्षार्थ है; जैसा आंख के ऊपर का चमड़ा। क्योंकि वह गुप्तस्थान अति कोमल है। जो उस पर चमड़ा न हो तो एक कीड़ी के भी काटने और थोड़ी सी चोट लगने से बहुत सा दुःख होवे और यह लघुशंका के पश्चात् कुछ मूत्रंश कपड़ों में न लगे इत्यादि बातों के लिये है। इसका काटना बुरा है और अब ईसाई लोग इस आज्ञा को क्यों नहीं करते? यह आज्ञा सदा के लिये है। इसके न करने से ईसा की गवाही जो कि व्यवस्था के पुस्तक का एक विन्दु भी झूठा नहीं है; मिथ्या हो गई। इसका सोच विचार ईसाई कुछ भी नहीं करते।।१८।।
१९- तब उस से बात करने से रह गया और अबिरहाम के पास से ईश्वर ऊपर जाता रहा।। - तौन उ० पर्व० १७। आ० २२।।
(समीक्षक) इससे यह सिद्ध होता है कि ईश्वर मनुष्य वा पक्षिवत् था जो ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर आता जाता रहता था। यह कोई इन्द्रजाली पुरुषवत् विदित होता है।।१९।।
२०- फिर ईश्वर उसे ममरे के बलूतों में दिखाई दिया और वह दिन को घाम के समय में अपने तम्बू के द्वार पर बैठा था।। और उसने अपनी आंखें उठाईं और क्या देखा कि तीन मनुष्य उसके पास खड़े हैं और उन्हें देख के वह तम्बू के द्वार पर से उनकी भेंट को दौड़ा और भूमि लों दण्डवत् किई।। और कहा हे मेरे स्वामी! यदि मैंने अब आप की दृष्टि में अनुग्रह पाया है तो मैं आपकी विनती करता हूं कि अपने दास के पास से चले न जाइये।। इच्छा होय तो थोड़ा जल लाया जाय और अपने चरण धोइये और पेड़ तले विश्राम कीजिये।। और मैं एक कौर रोटी लाऊं और आप तृप्त हूजिये। उसके पीछे आगे बढ़िये। क्योंकि आप इसीलिये दास के पास आये हैं।। तब वे बोले कि जैसा तू ने कहा तैसा कर।। और अबिरहाम तम्बू में सरः पास उतावली से गया और उसे कहा कि फुरती कर और तीन नपुआ चोखा पिसान ले के गूँध और उसके फुलके पका।। और अबिरहाम झुंड की ओर दौड़ा गया और एक अच्छा कोमल बछड़ा ले के दास को दिया। उसने भी उसे सिद्ध करने में चटक किया।। और उसने मक्खन और दूध और वह बछड़ा जो पकाया था; लिया और उनके आगे धरा और आप उनके पास पेड़ तले खड़ा रहा और उन्होंने खाया।। - तौन पर्व० १८। आ० १। २। ३। ४। ५। ६। ७। ८।।
(समीक्षक) अब देखिये सज्जन लोगो! जिनका ईश्वर बछड़े का मांस खावे उसके उपासक गाय, बछड़े आदि पशुओं को क्यों छोड़ें? जिसको कुछ दया नहीं और मांस के खाने में आतुर रहे वह विना हिसक मनुष्य के ईश्वर कभी हो सकता है? और ईश्वर के साथ दो मनुष्य न जाने कौन थे? इससे विदित होता है कि जंगली मनुष्यों की एक मण्डली थी। उनका जो प्रधान मनुष्य था। उसका नाम बाइबल में ईश्वर रक्खा होगा। इन्हीं बातों से बुद्धिमान् लोग इनके पुस्तक को ईश्वरकृत नहीं मान सकते और न ऐसे को ईश्वर समझते हैं।।२०।।
२१- और परमेश्वर ने अबिहराम से कहा कि सरः क्यों यह कहके मुसकुराई कि जो मैं बुढ़िया हूं सचमुच बालक जनूँगी।। क्या परमेश्वर के लिये कोई बात असाध्य है।। - तौन पर्व० १८। आ० १३। १४।।
(समीक्षक) अब देखिये कि क्या-क्या ईसाइयों के ईश्वर की लीला! कि जो लड़के वा स्त्रियों के समान चिढ़ता और ताना मारता है!!! ।।२१।।
२२- तब परमेश्वर ने समूद और अमूरः पर गन्धक और आग परमेश्वर की ओर से स्वर्ग से वर्षाया।। और उन नगरों को और सारे चौगान को और नगरों के सारे निवासियों को और जो कुछ भूमि पर उगता था; उलट दिया।। - तौन उत्प० पर्व० १९। आ० २४। २५।।
(समीक्षक) अब यह भी लीला बाइबल के ईश्वर की देखिये कि जिसको बालक आदि पर भी कुछ दया न आई! क्या वे सब ही अपराधी थे जो सब को भूमि उलटा के दबा मारा? यह बात न्याय, दया और विवेक से विरुद्ध है। जिनका ईश्वर ऐसा काम करे उनके उपासक क्यों न करें? ।।२२।।
२३- आओ हम अपने पिता को दाख रस पिलावें और हम उसके साथ शयन करें कि हम अपने पिता से वंश जुगावें।। तब उन्होंने उस रात अपने पिता को दाख रस पिलाया और पहिलोठी गई और अपने पिता के साथ शयन किया।। हम उसे आज रात भी दाख रस पिलावें तू जाके शयन कर।। सो लूत की दोनों बेटियां अपने पिता से गर्भिणी हुईं।। - तौन उत्प० पर्व० १९। आ० ३२। ३३। ३४। ३६।।
(समीक्षक) देखिये पिता पुत्री भी जिस मद्यपान के नशे में कुकर्म करने से न बच सके ऐसे दुष्ट मद्य को जो ईसाई आदि पीते हैं उनकी बुराई का क्या पारावार है? इसलिये सज्जन लोगों को मद्य के पीने का नाम भी न लेना चाहिये।।२३।।
२४- और अपने कहने के समान परमेश्वर ने सरः से भेंट किया और अपने वचन के समान परमेश्वर ने सरः के विषय में किया।। और सरः गर्भिणी हुई।। - तौन उत्प० पर्व० २१। आ० १। २।।
(समीक्षक) अब विचारिये कि सरः से भेंट कर गर्भवती की यह काम कैसे हुआ! क्या विना परमेश्वर और सरः के तीसरा कोई गर्भस्थापन का कारण दीखता है? ऐसा विदित होता है कि सरः परमेश्वर की कृपा से गर्भवती हुई!!!।।२४।।
२५- तब अबिहराम ने बड़े तड़के उठ के रोटी और एक पखाल में जल लिया और हाजिरः के कन्धे पर धर दिया और लड़के को भी उसे सौंप के उसे विदा किया।। उसने उस लड़के को एक झाड़ी के तले डाल दिया।। और वह उसके सम्मुख बैठ के चिल्ला-चिल्ला रोई।। तब ईश्वर ने उस बालक का शब्द सुना।। - तौन उत्प० पर्व० २१। आ० १४। १५। १६। १७।।
(समीक्षक) अब देखिये! ईसाइयों के ईश्वर की लीला कि प्रथम तो सरः का पक्षपात करके हाजिरः को वहां से निकलवा दी और चिल्ला-चिल्ला रोई हाजिरः और शब्द सुना लड़के का। यह कैसी अद्भुत बात है? यह ऐसा हुआ होगा कि ईश्वर को भ्रम हुआ होगा कि यह बालक ही रोता है। भला यह ईश्वर और ईश्वर की पुस्तक की बात कभी हो सकती है? विना साधारण मनुष्य के वचन के इस पुस्तक में थोड़ी सी बात सत्य के सब असार भरा है।।२५।।
२६- और इन बातों के पीछे यों हुआ कि ईश्वर ने अबिरहाम की परीक्षा किई, और उसे कहा हे अबिरहाम! तू अपने बेटे का अपने इकलौते इजहाक को जिसे तू प्यार करता है; ले। उसे होम की भेंट के लिए चढ़ा।। और अपने बेटे इजहाक को बांध के उस वेदी में लकड़ियों पर धरा।। और अबिरहाम ने छुरी लेके अपने बेटे का घात करने के लिये हाथ बढ़ाया।। तब परमेश्वर के दूत ने स्वर्ग पर से उसे पुकारा कि अबिरहाम अबिरहाम।। अपना हाथ लड़के पर मत बढ़ा, उसे कुछ मत कर, क्योंकि अब मैं जानता हूं कि तू ईश्वर से डरता है।। - तौन उत्प० पर्व० २२। आ० १। २। ९। १०। ११। १२।।
(समीक्षक) अब स्पष्ट हो गया कि यह बाइबल का ईश्वर अल्पज्ञ है सर्वज्ञ नहीं। और अबिरहाम भी एक भोला मनुष्य था, नहीं तो ऐसी चेष्टा क्यों करता? और जो बाइबल का ईश्वर सर्वज्ञ होता तो उसकी भविष्यत् श्रद्धा को भी सर्वज्ञता से जान लेता। इससे निश्चित होता है कि ईसाइयों का ईश्वर सर्वज्ञ नहीं।।२६।।
२७- सो आप हमारी समाधिन में से चुन के एक में अपने मृतक को गाड़िये जिस तें आप अपने मृतक को गाड़ें। - तौन उत्प० पर्व० २३। आ० ६।।
(समीक्षक) मुर्दों के गाड़ने से संसार को बड़ी हानि होती है क्योंकि वह सड़ के वायु को दुर्गन्धमय कर रोग फैला देता है।
(प्रश्न) देखो! जिससे प्रीति हो उसको जलाना अच्छी बात नहीं और गाड़ना जैसा कि उसको सुला देना है इसलिए गाड़ना अच्छा है।
(उत्तर) जो मृतक से प्रीति करते हो तो अपने घर में क्यों नहीं रखते? और गाड़ते भी क्यों हो? जिस जीवात्मा से प्रीति थी वह निकल गया, अब दुर्गन्धमय मट्टी से क्या प्रीति? और जो प्रीति करते हो तो उसको पृथिवी में क्यों गाड़ते हो क्योंकि किसी से कोई कहे कि तुझ को भूमि में गाड़ देवें तो वह सुन कर प्रसन्न कभी नहीं होता। उसके मुख आंख और शरीर पर धूल, पत्थर, ईंट, चूना डालना, छाती पर पत्थर रखना कौन सा प्रीति का काम है? और सन्दूक में डाल के गाड़ने से बहुत दुर्गन्ध होकर पृथिवी से निकल वायु को बिगाड़ कर दारुण रोगोत्पत्ति करता है। दूसरा एक मुर्दे के लिए कम से कम ६ हाथ लम्बी और ४ हाथ चौड़ी भूमि चाहिए। इसी हिसाब से सौ, हजार वा लाख अथवा क्रोड़ों मनुष्यों के लिए कितनी भूमि व्यर्थ रुक जाती है। न वह खेत, न बगीचा, और न वसने के काम की रहती है। इसलिये सब से बुरा गाड़ना है, उससे कुछ थोड़ा बुरा जल में डालना, क्योंकि उसको जलजन्तु उसी समय चीर फाड़ के खा लेते हैं परन्तु जो कुछ हाड़ वा मल जल में रहेगा वह सड़ कर जगत् को दुःखदायक होगा। उससे कुछ एक थोड़ा बुरा जंगल में छोड़ना है क्योंकि उसको मांसाहारी पशु पक्षी लूंच खायेंगे तथापि जो उसके हाड़, हाड़ की मज्जा और मल सड़ कर जितना दुर्गन्ध करेगा उतना जगत् का अनुपकार होगा; और जो जलाना है वह सर्वोत्तम है क्योंकि उसके सब पदार्थ अणु होकर वायु में उड़ जायेंगे।
(प्रश्न) जलाने से भी दुर्गन्ध होता है।
(उत्तर) जो अविधि से जलावे तो थोड़ा सा होता है परन्तु गाड़ने आदि से बहुत कम होता है। और जो विधिपूर्वक जैसा कि वेद में लिखा है- वेदी मुर्दे के तीन हाथ गहिरी, साढ़े तीन हाथ चौड़ी, पांच हाथ लम्बी, तले में डेढ़ हाथ बीता अर्थात् चढ़ा उतार खोद कर शरीर के बराबर घी उसमें एक सेर में रत्ती भर कस्तूरी, मासा भर केशर डाल न्यून से न्यून आध मन चन्दन अधिक चाहें जितना ले, अगर-तगर कपूर आदि और पलाश आदि की लकड़ियों को वेदी में जमा, उस पर मुर्दा रख के पुनः चारों ओर ऊपर वेदी के मुख से एक-एक बीता तक भर के उस घी की आहुति देकर जलाना लिखा है।
उस प्रकार से दाह करें तो कुछ भी दुर्गन्ध न हो किन्तु इसी का नाम अन्त्येष्टि, नरमेध, पुरुषमेध यज्ञ है। और जो दरिद्र हो तो बीस सेर से कम घी चिता में न डालें, चाहे वह भीख मांगने वा जाति वाले के देने अथवा राज से मिलने से प्राप्त हो परन्तु उसी प्रकार दाह करे। और जो घृतादि किसी प्रकार न मिल सके तथापि गाड़ने आदि से केवल लकड़ी से भी मृतक का जलाना उत्तम है क्योंकि एक विश्वा भर भूमि में अथवा एक वेदी में लाखों क्रोड़ों मृतक जल सकते हैं। भूमि भी गाड़ने के समान अधिक नहीं बिगड़ती और कबर के देखने से भय भी होता है। इससे गाड़ना आदि सर्वथा निषिद्ध है।।२७।।
२८- परमेश्वर मेरे स्वामी अबिरहाम का ईश्वर धन्य है जिसने मेरे स्वामी को अपनी दया और अपनी सच्चाई विना न छोड़ा। मार्ग में परमेश्वर ने मेरे स्वामी के भाइयों के घर की ओर मेरी अगुआई किई।। -तौन उत्प० पर्व० २४। आ० २७।।
(समीक्षक) क्या वह अबिरहाम ही का ईश्वर था? और जैसे आजकल बिगारी वा अगवे लोग अगुआई अर्थात् आगे-आगे चलकर मार्ग दिखलाते हैं तथा ईश्वर ने भी किया तो आजकल मार्ग क्यों नहीं दिखलाता? और मनुष्यों से बातें क्यों नहीं करता? इसलिए ऐसी बातें ईश्वर वा ईश्वर के पुस्तक की कभी नहीं हो सकतीं किन्तु जंगली मनुष्य की हैं।।२८।।
२९- इस्माइल के बेटों के नाम ये हैं- इस्माइल का पहिलौठा नबीत और कीदार और अदबिएल और मिबसाम।। और मिसमाअ और दूमः और मस्सा।। हदर और तैमा इतूर, नफीस और किदिमः।। -तौन उत्प० पर्व० २५। आ० १३। १४। १५।।
(समीक्षक) यह इस्माइल अबिरहाम से उसकी हाजिरः दासी का पुत्र हुआ था।।२९।।
३०- मैं तेरे पिता की रुचि के समान स्वादित भोजन बनाऊंगी।। और तू अपने पिता के पास ले जाइयो जिसतें वह खाय और अपने मरने से आगे तुझे आशीष देवे।। और रिबकः ने घर में से अपने जेठे बेटे एसौ का अच्छा पहिरावा लिया।। और बकरी के मेम्नों का चमड़ा उसके हाथों और गले की चिकनाई पर लपेटा।। तब यअकूब अपने पिता से बोला कि मैं आपका पहिलौठा एसौ हूं। आपके कहने के समान मैंने किया है, उठ बैठिये और मेरे अहेर के मांस में से खाइये जिसतें आप का प्राण मुझे आशीष दे।। - तौन उत्प० पर्व० २७। आ० ९। १०। १५। १६। १९।।
(समीक्षक) देखिये! ऐसे झूठ कपट से आशीर्वाद ले के पश्चात् सिद्ध और पैगम्बर बनते हैं क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है? और ऐसे ईसाइयों के अगुआ हुए हैं पुनः इनके मत की गड़बड़ में क्या न्यूनता हो? ।।३०।।
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If this circumcision would have been favored by God, he would not have made that skin into the original creation, and the one who has been made is protected; Like leather above the eye. Because that secret location is very soft. If there is no leather on it, then even the bite of a worm and a slight injury can cause a lot of grief and this is for things not to be put on clothes after urination. It is bad to bite and now why do not Christians follow this command? This order is forever.
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महर्षि दयानन्द की मानवीय संवेदना महर्षि स्वामी दयानन्द अपने करुणापूर्ण चित्त से प्रेरित होकर गुरुदेव की आज्ञा लेकर देश का भ्रमण करने निकल पड़े। तथाकथित ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व था। सती प्रथा के नाम पर महिलाओं को जिन्दा जलाया जा रहा था। स्त्रियों को पढने का अधिकार नहीं था। बालविवाह, नारी-शिक्षा,...