विशेष सूचना - Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज संस्कार केन्द्र इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी रायपुर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित रायपुर में एकमात्र केन्द्र है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज संस्कार केन्द्र इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी के अतिरिक्त रायपुर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Sanskar Kendra Indraprastha Colony Raipur is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Sanskar Kendra Indraprastha Colony Raipur is the only controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Chhattisgarh. We do not have any other branch or Centre in Raipur. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
arya samaj marriage indore india legal

त्रयोदश समुल्लास भाग -7

१११- और पांचवें दूत ने तुरही फूंकी और मैंने एक तारे को देखा जो स्वर्ग में से पृथिवी पर गिरा हुआ था और अथाह कुण्ड के कूप की कुंजी उसको दी गई।। और उसने अथाह कुण्ड का कूप खोला और कूप में से बड़ी भट्ठी के धुंए की नाईं धुंआ उठा।। और उस धुंए में से टिड्डियां पृथिवी पर निकल गईं और जैसा पृथिवी के बीछुओं को अधिकार होता है तैसा उन्हें अधिकार दिया गया।। और उनसे कहा गया कि उन मनुष्यों को जिनके माथे पर ईश्वर की छाप नहीं है।। पांच मास उन्हें पीड़ा दी जाय।। - यो० प्र० प० ९। आ० १। २। ३। ४। ५।।

(समीक्षक) क्या तुरही का शब्द सुनकर तारे उन्हीं दूतों पर और उसी स्वर्ग में गिरे होंगे? यहां तो नहीं गिरे। भला वह कूप वा टिड्डियां भी प्रलय के लिये ईश्वर ने पाली होंगी और छाप को देख बांच भी लेती होंगी कि छाप वालों को मत काटो? यह केवल भोले मनुष्यों को डरा के ईसाई बना लेने का धोखा देना है कि जो तुम ईसाई न होगे तो तुमको टिड्डियां काटेंगी परन्तु ऐसी बातें विद्याहीन देश में चल सकती हैं आर्य्यावर्त्त में नहीं। क्या वह प्रलय की बात हो सकती है।।१११।।

११२- और घुड़चढ़ों की सेनाओं की संख्या बीस करोड़ थी।। - यो० प्र० प० ९। आ० १६।।

(समीक्षक) भला ! इतने घोड़े स्वर्ग में कहां ठहरते, कहां चरते और कहां रहते और कितनी लीद करते थे? और उसका दुर्गन्ध भी स्वर्ग में कितना हुआ होगा? बस ऐसे स्वर्ग, ऐसे ईश्वर और ऐसे मत के लिये हम सब आर्य्यों ने तिलाञ्जलि दे दी है। ऐसा बखेड़ा ईसाइयों के शिर पर से भी सर्वशक्तिमान् की कृपा से दूर हो जाय तो बहुत अच्छा हो।।११२।।

११३- और मैंने दूसरे पराक्रमी दूत को स्वर्ग से उतरते देखा जो मेघ को ओढ़े था और उसके सिर पर मेघधनुष् था और उसका मुंह सूर्य्य की नाईं और उसके पांव आग के खम्भों के ऐसे थे।। और उसने अपना दाहिना पांव समुद्र पर और बायां पृथिवी पर रक्खा।। - यो० प्र० प० १०। आ० १। २।।

(समीक्षक) अब देखिये इन दूतों की कथा ! जो पुराणों वा भाटों की कथाओं से भी बढ़ कर है।।११३।।

११४- और लोगों के समान एक नर्कट मुझे दिया गया और कहा गया कि उठ! ईश्वर के मन्दिर को और वेदी को और उसमें के भजन करनेहारों को नाप।। - यो० प्र० प० ११। आ० १।।

(समीक्षक) यहां तो क्या परन्तु ईसाइयों के तो स्वर्ग में भी मन्दिर बनाये और नापे जाते हैं। अच्छा है, उनका जैसा स्वर्ग वैसी ही बातें हैं। इसीलिए यहां प्रभुभोजन में ईसा के शरीरावयव मांस लोहू की भावना करके खाते पीते हैं और गिर्जा में भी क्रूश आदि का आकार बनाना आदि भी बुतपरस्ती है।।११४।।

११५- और स्वर्ग में ईश्वर का मन्दिर खोला गया और उसके नियम का सन्दूक उसके मन्दिर में दिखाई दिया।। - यो० प्र० प० ११। आ० १९।।

(समीक्षक) स्वर्ग में जो मन्दिर है सो हर समय बन्द रहता होगा। कभी-कभी खोला जाता होगा। क्या परमेश्वर का भी कोई मन्दिर हो सकता है? जो वेदोक्त परमात्मा सर्वव्यापक है उसका कोई भी मन्दिर नहीं हो सकता। हां! ईसाइयों का जो परमेश्वर आकारवाला है उसका चाहे स्वर्ग में हो चाहे भूमि में। और जैसी लीला टं टन् पूं पूं की यहां होती है वैसी ही ईसाइयों के स्वर्ग में भी। और नियम का सन्दूक भी कभी-कभी ईसाई लोग देखते होंगे। उससे न जाने क्या प्रयोजन सिद्ध करते होंगे? सच तो यह है कि ये सब बातें मनुष्यों को लुभाने की हैं।।११५।।

११६- और एक बड़ा आश्चर्य स्वर्ग में दिखाई दिया अर्थात् एक स्त्री जो सूर्य्य पहिने है और चांद उसके पांवों तले है और उसके सिर पर बारह तारों का मुकुट है।। और वह गर्भवती होके चिल्लाती है क्योंकि प्रसव की पीड़ा उसे लगी और वह जनने को पीड़ित है।। और दूसरा आश्चर्य स्वर्ग में दिखाई दिया और देखो एक बड़ा लाल अजगर है जिसके सात सिर और दस सींग हैं और उसके सिरों पर सात राजमुकुट हैं।। और उसकी पूंछ ने आकाश के तारों की एक तिहाई को खींच के उन्हें पृथिवी पर डाला।। - यो० प्र० प० १२। आ० १। २। ३। ४।।

(समीक्षक) अब देखिये लम्बे चौड़े गपोड़े ! इनके स्वर्ग में भी विचारी स्त्री चिल्लाती है। उसका दुःख कोई नहीं सुनता, न मिटा सकता है। और उस अजगर की पूंछ कितनी बड़ी थी जिसने एक तिहाई तारों को पृथिवी पर डाला? भला! पृथिवी तो छोटी है और तारे भी बडे़-बड़े लोक हैं। इस पृथिवी पर एक भी नहीं समा सकता। किन्तु यहां यही अनुमान करना चाहिये कि ये तारों की तिहाई इस बात के लिखने वाले के घर पर गिरे होंगे और जिस अजगर की पूंछ इतनी बड़ी थी जिससे सब तारों की तिहाई लपेट कर भूमि पर गिरा दी वह अजगर भी उसी के घर में रहता होगा।।११६।।

११७- और स्वर्ग में युद्ध हुआ मीखायेल और उसके दूत अजगर से लडे़ और अजगर और उसके दूत लड़े।। - यो० प्र० प० १२। आ० ७।।

(समीक्षक) जो कोई ईसाइयों के स्वर्ग में जाता होगा वह भी लड़ाई में दुःख पाता होगा। ऐसे स्वर्ग की यहीं से आशा छोड़ हाथ जोड़ बैठ रहो। जहां शान्तिभंग और उपद्रव मचा रहे वह ईसाइयों के योग्य है।।११७।।

११८- और वह बड़ा अजगर गिराया गया। हां ! वह प्राचीन सांप जो दियाबल और शैतान कहावता है जो सारे संसार का भरमानेहारा है।। - यो० प्र० प० १२। आ० ९।।

(समीक्षक) क्या जब वह शैतान स्वर्ग में था तब लोगों को नहीं भरमाता था? और उसको जन्म भर बन्दीगृह में घिरा अथवा मार क्यों न डाला? उसको पृथिवी पर क्यों डाल दिया? जो सब संसार का भरमाने वाला शैतान है तो शैतान को भरमाने वाला कौन है? यदि शैतान स्वयं भर्मा है तो शैतान के विना भरमनेहारे भर्मेंेगे और जो भरमानेहारा परमेश्वर है तो वह ईश्वर ही नहीं ठहरा। विदित तो यह होता है कि ईसाइयों का ईश्वर भी शैतान से डरता होगा क्योंकि जो शैतान से प्रबल है तो ईश्वर ने उसको अपराध करते समय ही दण्ड क्यों न दिया ? जगत् में शैतान का जितना राज है उसके सामने सहस्रांश भी ईसाइयों के ईश्वर का राज नहीं। इसीलिये ईसाइयों का ईश्वर उसे हटा नहीं सकता होगा। इससे यह सिद्ध हुआ कि जैसा इस समय के राज्याधिकारी ईसाई डाकू चोर आदि को शीघ्र दण्ड देते हैं वैसा भी ईसाइयों का ईश्वर नहीं । पुनः कौन ऐसा निर्बुद्धि मनुष्य है जो वैदिक मत को छोड़ पोकल ईसाई मत स्वीकार करे? ।।११८।।

११९- हाय पृथिवी और समुद्र के निवासियो! क्योंकि शैतान तुम पास उतरा है।। - यो० प्र० प० १२। आ० १२।।

(समीक्षक) क्या वह ईश्वर वहीं का रक्षक और स्वामी है? पृथिवी के मनुष्यादि प्राणियों का रक्षक और स्वामी नहीं है? यदि भूमि का भी राजा है तो शैतान को क्यों न मार सका? ईश्वर देखता रहता है और शैतान बहकाता फिरता है तो भी उसको वर्जता नहीं।। विदित तो यह होता है कि एक अच्छा ईश्वर और एक समर्थ दुष्ट दूसरा ईश्वर हो रहा है।।११९।।

१२०- और बयालीस मास लों युद्ध करने का अधिकार उसे दिया गया।। और उसने ईश्वर के विरुद्ध निन्दा करने को अपना मुंह खोला कि उसके नाम की और उसके तम्बू की और स्वर्ग में वास करनेहारों की निन्दा करे।। और उसको यह दिया गया कि पवित्र लोगों से युद्ध करे और उन पर जय करे और हर एक कुल और भाषा और देश पर उसको अधिकार दिया गया।। - यो० प्र० प० १३। आ० ५। ६। ७।।

(समीक्षक) भला ! जो पृथिवी के लोगों को बहकाने के लिये शैतान और पशु आदि को भेजे और पवित्र मनुष्यों से युद्ध करावे वह काम डाकुओं के सरदार के समान है वा नहीं। ऐसा काम ईश्वर वा ईश्वर के भक्तों का नहीं हो सकता।।१२०।।

१२१- और मैंने दृष्टि की और देखो मेम्ना सियोन पर्वत पर खड़ा है और उसके संग एक लाख चवालीस सहस्र जन थे जिनके माथे पर उसका नाम और उसके पिता का नाम लिखा है।। - यो० प्र० प० १४। आ० १।।

(समीक्षक) अब देखिये ! जहां ईसा का बाप रहता था वहीं उसी सियोन पहाड़ पर उसका लड़का भी रहता था। परन्तु एक लाख चवालीस सहस्र मनुष्यों की गणना क्योंकर की? एक लाख चवालीस सहस्र ही स्वर्ग के वासी हुए। शेष करोड़ों ईसाइयों के शिर पर न मोहर लगी? क्या ये सब नरक में गये? ईसाइयों को चाहिये कि सियोन पर्वत पर जाके देखें कि ईसा का उक्त बाप और उनकी सेना वहां है वा नहीं? जो हों तो यह लेख ठीक है; नहीं तो मिथ्या। यदि कहीं से वहां आया है तो कहां से आया? जो कहो स्वर्ग से; तो क्या वे पक्षी हैं कि इतनी बड़ी सेना और आप ऊपर नीचे उड़ कर आया जाया करें? यदि वह आया जाया करता है तो एक जिले के न्यायाधीश के समान हुआ। और वह एक दो या तीन हो तो नहीं बन सकेगा किन्तु न्यून एक-एक भूगोल में एक-एक ईश्वर चाहिए। क्योंकि एक दो तीन अनेक ब्रह्माण्डों का न्याय करने और सर्वत्र युगपत् घूमने में समर्थ कभी नहीं हो सकते।।१२१।।

१२२- आत्मा कहता है हां कि वे अपने परिश्रम से विश्राम करेंगे परन्तु उनके कार्य्य उनके संग हो लेते हैं।। - यो० प्र० प० १४। आ० १३।।

(समीक्षक) देखिये ! ईसाइयों का ईश्वर तो कहता है उनके कर्म उन के संग रहेंगे अर्थात् कर्मानुसार फल सब को दिये जायेंगे और ये लोग कहते हैं कि ईसा पापों को ले लेगा और क्षमा भी किये जायेंगे। यहां बुद्धिमान् विचारें कि ईश्वर का वचन सच्चा वा ईसाइयों का ? एक बात में दोनों तो सच्चे हो ही नहीं सकते। इनमें से एक झूठा अवश्य होगा। हम को क्या ! चाहे ईसाइयों का ईश्वर झूठा हो वा ईसाई लोग।।१२२।।

१२३- और उसे ईश्वर के कोप के बडे़ रस के कुण्ड में डाला। और रस के कुण्ड का रौंदन नगर के बाहर किया गया और रस के कुण्ड में से घोड़ों के लगाम तक लोहू एक सौ कोश तक बह निकला।। - यो० प्र० प० १४। आ० १९। २०।।

(समीक्षक) अब देखिये ! इनके गपोड़े पुराणों से भी बढ़कर हैं वा नहीं? ईसाइयों का ईश्वर कोप करते समय बहुत दुःखित हो जाता होगा और उसके कोप के कुण्ड भरे हैं क्या उसका कोप जल है? वा अन्य द्रवित पदार्थ है कि जिससे कुण्ड भरे हैं? और सौ कोश तक रुधिर का बहना असम्भव है क्योंकि रुधिर वायु लगने से झट जम जाता है पुनः क्यों कर बह सकता है? इसलिये ऐसी बातें मिथ्या होती हैं।।१२३।।

१२४- और देखो स्वर्ग में साक्षी के तम्बू का मन्दिर खोला गया।। - यो० प्र० प० १५। आ० ५।।

(समीक्षक) जो ईसाइयों का ईश्वर सर्वज्ञ होता तो साक्षियों का क्या काम? क्योंकि वह स्वयं सब कुछ जानता होता। इससे सर्वथा यही निश्चय होता है कि इनका ईश्वर सर्वज्ञ नहीं किन्तु मनुष्यवत् अल्पज्ञ है। वह ईश्वरता का क्या काम कर सकता है? नहि नहि नहि, और इसी प्रकरण में दूतों की बड़ी-बड़ी असम्भव बातें लिखी हैं उनको सत्य कोई नहीं मान सकता। कहां तक लिखें इस प्रकरण में सर्वथा ऐसी ही बातें भरी हैं।।१२४।।

१२५- और ईश्वर ने उसके कुकर्मों को स्मरण किया है।। जैसा उसने तुम्हें दिया है तैसा उसको भर देओ और उसके कर्मों के अनुसार दूना उसे दे देओ।। - यो० प्र० प० १८। आ० ५। ६।।

(समीक्षक) देखो! प्रत्यक्ष ईसाइयों का ईश्वर अन्यायकारी है। क्योंकि न्याय उसी को कहते हैं कि जिसने जैसा वा जितना कर्म किया उसको वैसा और उतना ही फल देना। उससे अधिक न्यून देना अन्याय है। जो अन्यायकारी की उपासना करते हैं वे अन्यायकारी क्यों न हों।।१२५।।

१२६- क्योंकि मेम्ने का विवाह आ पहुंचा है और उसकी स्त्री ने अपने को तैयार किया है।। - यो० प्र० प० १९। आ० ७।।

(समीक्षक) अब सुनिये! ईसाइयों के स्वर्ग में विवाह भी होते हैं! क्योंकि ईसा का विवाह ईश्वर ने वहीं किया। पूछना चाहिये कि उसके श्वसुर, सासू, सालादि कौन थे और लड़के बाले कितने हुए? और वीर्य के नाश होने से बल, बुद्धि, पराक्रम आयु आदि के भी न्यून होने से अब तक ईसा ने वहां शरीर त्याग किया होगा क्योंकि संयोगजन्य पदार्थ का वियोग अवश्य होता है। अब तक ईसाइयों ने उसके विश्वास में धोखा खाया और न जाने कब तक धोखे में रहेंगे।।१२६।।

१२७- और उसने अजगर को अर्थात् प्राचीन सांप को जो दियाबल और शैतान है पकड़ के उसे सहस्र वर्ष लों बांध रक्खा।। और उसको अथाह कुण्ड में डाला और बन्द करके उसे छाप दी जिसतें वह जब लों सहस्र वर्ष पूरे न हों तब लों फिर देशों के लोगों को न भरमावे।। - यो० प्र० प० २०। आ० २। ३।।

(समीक्षक) देखो ! मरूं मरूं करके शैतान को पकड़ा और सहस्र वर्ष तक बन्ध किया; फिर भी छूटेगा। क्या फिर न भरमावेगा? ऐसे दुष्ट को तो बन्दीगृह में ही रखना वा मारे विना छोड़ना ही नहीं। परन्तु यह शैतान का होना ईसाइयों का भ्रममात्र है वास्तव में कुछ भी नहीं। केवल लोगों को डरा के अपने जाल में लाने का उपाय रचा है। जैसे किसी धूर्त्त ने किन्हीं भोले मनुष्य से कहा कि चलो ! तुमको देवता का दर्शन कराऊं। किसी एकान्त देश में ले जाके एक मनुष्य को चतुर्भुज बना कर रक्खा। झाड़ी में खड़ा करके कहा कि आंख मीच लो। जब मैं कहूं तब खोलना और फिर जब कहूँ तभी मीच लो । जो न मीचेगा वह अन्धा हो जायेगा। वैसी इन मत वालों की बातें हैं कि जो हमारा मजहब न मानेगा वह शैतान का बहकाया हुआ है। जब वह सामने आया तब कहा-देखो! और पुनः शीघ्र कहा कि मीच लो। जब फिर झाड़ी में छिप गया तब कहा-खोलो! देखा नारायण को, सब ने दर्शन किया ! वैसी लीला मजहबियों की है। इसलिये इनकी माया में किसी को न फंसना चाहिये।।१२७।।

१२८- जिसके सम्मुख से पृथिवी और आकाश भाग गये और उनके लिये जगह न मिली।। और मैंने क्या छोटे क्या बड़े सब मृतकों को ईश्वर के आगे खड़े देखा और पुस्तक खोले गये और दूसरा पुस्तक अर्थात् जीवन का पुस्तक खोला गया और पुस्तकों में लिखी हुई बातों से मृतकों का विचार उनके कर्मों के अनुसार किया गया।। - यो० प्र० प० २०। आ० ११। १२।।

(समीक्षक) यह देखो लड़कपन की बात! भला पृथिवी और आकाश कैसे भाग सकेंगे? और वे किस पर ठहरेंगे? जिनके सामने से भगे। और उसका सिहासन और वह कहाँ ठहरा? और मुर्दे परमेश्वर के सामने खड़े किये गये तो परमेश्वर भी बैठा वा खड़ा होगा? क्या यहां की कचहरी और दूकान के समान ईश्वर का व्यवहार है जो कि पुस्तक लेखानुसार होता है? और सब जीवों का हाल ईश्वर ने लिखा वा उसके गुमाश्तों ने? ऐसी-ऐसी बातों से अनीश्वर को ईश्वर और ईश्वर को अनीश्वर ईसाई आदि मत वालों ने बना दिया।।१२८।।

१२९- उनमें से एक मेरे पास आया और मेरे संग बोला कि आ मैं दुलहिन को अर्थात् मेम्ने की स्त्री को तुझे दिखाऊंगा।। - यो० प्र० प० २१। आ० ९।।

(समीक्षक) भला! ईसा ने स्वर्ग में दुलहिन अर्थात् स्त्री अच्छी पाई, मौज करता होगा। जो जो ईसाई वहां जाते होंगे उनको भी स्त्रियां मिलती होंगी और लड़के बाले होते होंगे औेर बहुत भीड़ के हो जाने के कारण रोगोत्पत्ति होकर मरते भी होंगे। ऐसे स्वर्ग को दूर से हाथ ही जोड़ना अच्छा है।।१२९।।

१३०- और उसने उस नल से नगर को नापा कि साढ़े सात सौ कोश का है। उसकी लम्बाई और चौड़ाई और ऊँचाई एक समान है।। और उसने उसकी भीत को मनुष्य के अर्थात् दूत के नाप से नापा कि एक सौ चवालीस हाथ की है।। और उसकी भीत की जुड़ाई सूर्य्यकान्त की थी और नगर निर्मल सोने का था जो निर्मल कांच के समान था।। और नगर की भीत की नेवें हर एक बहुमूल्य पत्थर से सँवारी हुई थीं। पहिली नेव सूर्य्यकान्त की थी; दूसरी नीलमणि की; तीसरी लालड़ी की, चौथी मरकत की।। पांचवीं गोमेदक की, छठवीं माणिक्य की, सातवीं पीतमणि की, आठवीं पेरोज की, नवीं पुखराज की, दशवीं लहसनिये की, ग्यारहवीं धूम्रकान्त की, बारहवीं मर्टीष की।। और बारह फाटक बारह मोती थे, एक-एक मोती से एक-एक फाटक बना था और नगर की सड़क स्वच्छ कांच के ऐसे निर्मल सोने की थी।। - यो० प्र० प० २१। आ० १६। १७। १८। १९। २०। २१।।

(समीक्षक) सुनो ईसाइयों के स्वर्ग का वर्णन! यदि ईसाई मरते जाते और जन्मते जाते हैं तो इतने बड़े शहर में कैसे समा सकेंगे? क्योंकि उसमें मनुष्यों का आगम होता है और उससे निकलते नहीं और जो यह बहुमूल्य रत्नों की बनी हुई नगरी मानी है और सर्व सोने की है इत्यादि लेख केवल भोले-भोले मनुष्यों को बहका कर फंसाने की लीला है। भला लम्बाई चौड़ाई तो उस नगर की लिखी सो हो सकती परन्तु ऊँचाई साढ़े सात सौ कोश क्योंकर हो सकती है? यह सर्वथा मिथ्या कपोलकल्पना की बात है और इतने बड़े मोती कहां से आये होंगे। इस लेख के लिखने वाले के घर के घड़े में से। यह गपोड़ा पुराण का भी बाप है।।१३०।।

१३१- और कोई अपवित्र वस्तु अथवा घिनित कर्म करनेहारा अथवा झूठ पर चलने हारा उसमें किसी रीति से प्रवेश न करेगा।। - यो० प्र० प० २१। आ० २७।।

(समीक्षक) जो ऐसी बात है तो ईसाई लोग क्यों कहते हैं कि पापी लोग भी स्वर्ग में ईसाई होने से जा सकते हैं। यह बात ठीक नहीं है। यदि ऐसा है तो योहन्ना स्वप्ने की मिथ्या बातों का करनेहारा स्वर्ग में प्रवेश कभी न कर सका होगा और ईसा भी स्वर्ग में न गया होगा क्योंकि जब अकेला पापी स्वर्ग को प्राप्त नहीं हो सकता तो जो अनेक पापियों के पाप के भार से युक्त है वह क्योंकर स्वर्गवासी हो सकता है।।१३१।।

१३२- और अब कोई श्राप न होगा और ईश्वर का और मेम्ने का सिहासन उसमें होगा और उसके दास उसकी सेवा करेंगे।। और ईश्वर उसका मुंह देखेंगे और उसका नाम उनके माथे पर होगा।। और वहां रात न होगी और उन्हें दीपक का अथवा सूर्य्य की ज्योति का प्रयोजन नहीं क्योंकि परमेश्वर ईश्वर उन्हें ज्योति देगा, वे सर्वदा राज्य करेंगे।। - यो० प्र० प० २२। आ० ३। ४। ५।।

(समीक्षक) देखिये यही ईसाइयों का स्वर्गवास ! क्या ईश्वर और ईसा सिहासन पर निरन्तर बैठे रहेंगे? और उनके दास उनके सामने सदा मुंह देखा करेंगे। अब यह तो कहिये तुम्हारे ईश्वर का मुंह यूरोपियन के सदृश गोरा वा अफ्रीका वालों के सदृश काला अथवा अन्य देश वालों के समान है? यह तुम्हारा स्वर्ग भी बन्धन है क्योंकि जहां छोटाई बड़ाई है और उसी एक नगर में रहना अवश्य है तो वहां दुःख क्यों न होता होगा जो मुख वाला है वह ईश्वर सर्वज्ञ सर्वेश्वर कभी नहीं हो सकता।।१३२।।

१३३- देख ! मैं शीघ्र आता हूँ और मेरा प्रतिफल मेरे साथ है जिसतें हर एक को जैसा उसका कार्य ठहरेगा वैसा फल देऊंगा।। - यो० प्र० प० २२। आ० १२।।

(समीक्षक) जब यही बात है कि कर्मानुसार फल पाते हैं तो पापों की क्षमा कभी नहीं होती और जो क्षमा होती है तो इञ्जील की बातें झूठीं। यदि कोई कहे कि क्षमा करना भी इञ्जील में लिखा है तो पूर्वापर विरुद्ध अर्थात् ‘हल्फदरोगी’ हुई तो झूठ है। इसका मानना छोड़ देओ। अब कहां तक लिखें इनकी बाइबल में लाखों बातें खण्डनीय हैं। यह तो थोड़ा सा चिह्न मात्र ईसाइयों की बाइबल पुस्तक का दिखलाया है। इतने ही से बुद्धिमान् लोग बहुत समझ लेंगे। थोड़ी सी बातों को छोड़ शेष सब झूठ भरा है। जैसे झूठ के संग से सत्य भी शुद्ध नहीं रहता वैसा ही बाइबल पुस्तक भी माननीय नहीं हो सकता किन्तु वह सत्य तो वेदों के स्वीकार में गृहीत होता ही है।।१३३।।

इति श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिनिर्मिते सत्यार्थप्रकाशे

सुभाषाविभूषिते कृश्चीनमतविषये त्रयोदश समुल्लास सम्पूर्ण ।।१३।।

अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें -

क्षेत्रीय कार्यालय (रायपुर)
आर्य समाज संस्कार केन्द्र
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट रायपुर शाखा
वण्डरलैण्ड वाटरपार्क के सामने, DW-4, इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी
होण्डा शोरूम के पास, रिंग रोड नं.-1, रायपुर (छत्तीसगढ़)
हेल्पलाइन : 9109372521
www.aryasamajonline.co.in 

 

राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com 

---------------------------------------

Regional Office (Raipur)
Arya Samaj Sanskar Kendra
Akhil Bharat Arya Samaj Trust Raipur Branch
Opposite Wondland Water Park
DW-4, Indraprastha Colony, Ring Road No.-1
Raipur (Chhattisgarh) 492010
Helpline No.: 9109372521
www.aryasamajonline.co.in 

 

National Administrative Office
Akhil Bharat Arya Samaj Trust
Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
Indore (M.P.) 452009
Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com 

 

When it is the case that you get fruits according to order, then there is never forgiveness of sins and whatever is forgiven, then the words of the Scripture are false. If someone says that forgiveness is also written in Scripture, then it is a lie against the Purvar ie 'halftrogy'. Stop believing it. Now how far to write, millions of things in their Bible are fragmentary. This is just a little sign of the Bible book of Christians. With this, intelligent people will understand a lot. Except for a few things, everything else is false.

Thirteen Chapter Part - 7 of Satyarth Prakash (the Light of Truth) | Arya Samaj Raipur | Arya Samaj Mandir Raipur | Arya Samaj Mandir Marriage Helpline Raipur | Aryasamaj Mandir Helpline Raipur | inter caste marriage Helpline Raipur | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Raipur | Arya Samaj Raipur | Arya Samaj Mandir Raipur | arya samaj marriage Raipur | arya samaj marriage rules Raipur | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj Raipur | human rights in Raipur | human rights to marriage in Raipur | Arya Samaj Marriage Guidelines Raipur | inter caste marriage consultants in Raipur | court marriage consultants in Raipur | Arya Samaj Mandir marriage consultants in Raipur | arya samaj marriage certificate Raipur | Procedure of Arya Samaj Marriage Raipur | arya samaj marriage registration Raipur | arya samaj marriage documents Raipur | Procedure of Arya Samaj Wedding Raipur | arya samaj intercaste marriage Raipur | arya samaj wedding Raipur | arya samaj wedding rituals Raipur | arya samaj wedding legal Raipur | arya samaj shaadi Raipur | arya samaj mandir shaadi Raipur | arya samaj shadi procedure Raipur | arya samaj mandir shadi valid Raipur | arya samaj mandir shadi Raipur | inter caste marriage Raipur | validity of arya samaj marriage certificate Raipur | validity of arya samaj marriage Raipur | Arya Samaj Marriage Ceremony Raipur | Arya Samaj Wedding Ceremony Raipur | Documents required for Arya Samaj marriage Raipur | Arya Samaj Legal marriage service Raipur | Arya Samaj Pandits Helpline Raipur | Arya Samaj Pandits Raipur | Arya Samaj Pandits for marriage Raipur | Arya Samaj Temple Raipur | Arya Samaj Pandits for Havan Raipur | Arya Samaj Pandits for Pooja Raipur | Pandits for marriage Raipur | Pandits for Pooja Raipur | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction without Demolition Raipur | Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Raipur | Vedic Pandits Helpline Raipur | Hindu Pandits Helpline Raipur | Pandit Ji Raipur, Arya Samaj Intercast Matrimony Raipur | Arya Samaj Hindu Temple Raipur | Hindu Matrimony Raipur | सत्यार्थप्रकाश | वेद | महर्षि दयानन्द सरस्वती | विवाह समारोह, हवन | आर्य समाज पंडित | आर्य समाजी पंडित | अस्पृश्यता निवारणार्थ अन्तरजातीय विवाह | आर्य समाज मन्दिर | आर्य समाज मन्दिर विवाह | वास्तु शान्ति हवन | आर्य समाज मन्दिर आर्य समाज विवाह भारत | Arya Samaj Mandir Marriage Raipur Chhattisgarh India

  • महर्षि दयानन्द की मानवीय संवेदना

    महर्षि दयानन्द की मानवीय संवेदना महर्षि स्वामी दयानन्द अपने करुणापूर्ण चित्त से प्रेरित होकर गुरुदेव की आज्ञा लेकर देश का भ्रमण करने निकल पड़े। तथाकथित ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व था। सती प्रथा के नाम पर महिलाओं को जिन्दा जलाया जा रहा था। स्त्रियों को पढने का अधिकार नहीं था। बालविवाह, नारी-शिक्षा,...

    Read More ...

all india arya samaj marriage place
pandit requirement
Copyright © 2022. All Rights Reserved. aryasamajraipur.com